tag:blogger.com,1999:blog-12827765374994325192024-03-13T04:16:09.490-07:00वर्धमानRaravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.comBlogger58125tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-34536039121441143162022-01-02T13:27:00.001-08:002022-01-02T13:27:15.166-08:00नया साल २०२२<p>नया साल आ चुका है। सभी को हार्दिक शुभकामना। दुनिया अब भी करोना के प्रकोप से उबर नहीं</p><p>पाई है। नये साल में कुछ नियमित लिख सकूँ ऐसा चाहता हूँ। </p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-82209557803547498502021-01-03T09:40:00.000-08:002021-01-03T09:40:03.841-08:00नव वर्ष की शुभकामनाएँ<p> नया साल आप सबके लिए शुभ हो।</p><p>नये सुंदर विचार मन में आयें और कर्म में परिणत हो मूर्त रूप लें। </p><p>हमारे परिवेश सुंदर हों स्वच्छ हों।</p><p>2021 ना जाने इसके गर्भ में क्या क्या छुपा होगा। </p><p>शुभकामनाएँ।</p>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-17525287094790617062019-04-06T04:15:00.001-07:002019-04-06T04:22:25.804-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<strong>चुनाव का मौसम: मोदी को पुनः क्यों नहीं चुने?</strong><br />
<strong></strong><br />
भारत में चुनाव की सरगर्मी है। मोदी की भाजपा और राहुल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच मुकाबला है । कुछ और छोटी पार्टिया हैं जो स्थानीय स्तर पर मुकाबले में हैं ।<br />
भाजपा के समर्थक उन्हें मोदी के सक्षम नेतृत्व, पिछले ५ वर्षों में किये गए विकास कार्य और भारतीय/ हिन्दू संस्कृति के संरक्षक के रूप में अपना समर्थन देना चाहते हैं । <br />
समाज का एक पक्ष है जो मोदी के नेतृत्व वाले भाजपा के विरोध में खड़े हैं। मगर ये मोदी के विरोध में क्यों है यह पूरी तरह से साफ़ नहीं है । <br />
एक बात तो है की जो गैर हिन्दू धर्मावलम्बी हैं उनमे भाजपा के प्रति एक पुराना विरोध है और वह और भी गहरा हुआ है. मगर मैं यहाँ धर्मनिरपेक्ष रूप से समझना चाहता हूँ की हमें मोदी के नेतृत्व को क्यों नकारना चाहिए.<br />
इस विरोध के कई स्तर हैं। मैं उनकी जाँच करने की कोशिश कर रहा हूँ । <br />
<br />
<strong>नमो एक नेता के रूप में</strong>: <br />
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मोदी एक विनम्र नेता के रूप में नहीं दीखते हैं , इनका स्वाभाव कठोर दीखता है। कई बार ये घमंडी और गौरवोन्मत्त लगते हैं। पार्टी के अंदर इनकी छवि एक कठोर वयक्ति के रूप में है जो विरोध के प्रति बहुत कठोर व्यवहार कर सकता है। आडवाणी जी के प्रति इनका व्यवहार रूखा और कठोर रहा है. पार्टी के अंदर किसी भी विरोध के स्वर को किनारे कर दिया गया है. विपक्षी नेताओं के साथ भी इनका व्यव्हार रूखा ही रहा है. इस सन्दर्भ में अटल जी की याद आती है उनका वक्तित्व मोदी से बहुत ही अलग था, पर अगर इंदिरा गाँधी के बारे में जितना जानता हूँ तो लगता है वो कुछ हद तक ऐसी ही थी. </div>
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मोदी मुझे ज्ञानवान और बहुत पढ़े लिखे नहीं लगते हैं। कई बार उनके भाषणों में तथ्यात्मक त्रुटियां भी होती हैं. और कई बार ज्यादा ही नाटकीय लगते हैं जैसे की दुसरे देश के नेताओं से गले मिलना या पड़ जाना, कैमरा के आकर्षण का केंद्र बने रहने की चेष्टा करना आदि. मगर एक गैर हिंदी भाषी हो कर भी जिस तरह से उन्होंने हिंदी में देश के लोगों से संवाद किया है वो मुझे अच्छा लगता है. मगर आज के सन्दर्भ में कोई भी नेता पहले के कई नेताओं की तरह ज्ञान संपन्न नहीं लगते है. मुझे लगत है की गाँधी जी, नेहरू जी, राजेंद्र बाबू , जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया आदि का बौद्धिक स्तर अलग ही था. मनमोहन सिंह जी भी बहुतही ज्ञानी थे. इंदिरा गाँधी का ज्ञान भी उथला ही था, मगर अभी के जो बाकी नेता हैं जैसे की राहुल, अखिलेश, मायवती, चंद्र बाबू , ममता, तेजस्वी, कुमारस्वामी आदि तो फिर मुझे इस मामले में और भी निराशा होती है. </div>
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मिडिया के साथ भी इनका सम्बन्ध थोड़ा अलग ही रहा है. या तो बस अपने मन की बात कहते हैं या फिर सिर्फ अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकार से बाते करते हैं जो की साफ़ लगता है कि staged है. उन्हें खुल कर पत्रकार सम्मलेन में भाग लेना चाहिए जिससे की लोगों को मुश्किल मामले में उनकी क्या राय है के बारे में पता चले. मगर सच कहूँ तो मुख्य प्रतिद्वंदी राहुल जी के बारे में भी ये बात लागू होती है। </div>
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<strong>विकास कार्य:</strong></div>
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पिछले ५ वर्षों में कई बड़े निर्णय लिए गए हैं। अपेक्षित विकास शायद नहीं हुआ है. गरीबी अभी भी है, लोग बेरोजगार हैं, समाज में असमानता नहीं घटी है. कला धन वापस आया हो ऐसा नहीं कह सकते हैं. मगर पिछली सरकार ने या विकल्प सरकार से भी कुछ ज्यादा उम्मीद करना सही नहीं लगता है. कांग्रेस सरकार का <strong> मनरेगा कार्यक्रम</strong> एक अच्चा कदम था. और इसे और मजबूत किया जाना चाहिए। कांग्रेस की ७२००० से बेहतर होगा कि मनरेगा जैसे कार्यक्रम को बढ़ाया जाय. ७२००० का प्रस्ताव एक नए तरह के आरक्षण जैसा मुद्दा बन जायेगा जिस पर कोई सार्थक बहस मुश्किल होगी और किसी भी सरकार के लिए उसे कमतर करना असंभव जैसा होगा. मुझे नहीं लगता है की विकास कार्य में अपेक्षित प्रगति नहीं होने की वजह से मैं मोदी का विरोध करूंगा. </div>
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<strong>भ्रष्टाचार :</strong> राफेल का मुद्दा हवा में है, शंका है पर पता है. माल्या और नीरव जैसे लोगों ने देश को आर्थिक रूप से धोखा दिया है. मगर भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा नही बन पायेगा ऐसा लगता है , क्योंकि तुलना के लिए है UPA २, </div>
राजद , सजपा और मायावती।<br />
<br />
<strong>विदेश नीति:</strong> पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध बिगड़े ही हैं , सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय को आम लोगों से जोड़ा है जो की एक अच्छी पहल रही है. मैं चाहूंगा की एक ऐसी सरकार बने जो पाकिस्तान और अन्य पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध अच्छे कर सके. नेपाल का भी मुद्दा है.<br />
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<strong>न्यायपूर्ण और समन्वयवादी व्यवस्था</strong> : यह एक ऐसा मुद्दा है जहाँ मुझे वर्तमान सररकार से मुख्य शिकायत है. गुजरात दंगो से ही मोदी की छवि धूमिल थी. पिछले पांच वर्षों में कुछ घटनाएं ऐसी हुईं हैं जो किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मिंदगी और बेचैन कर देने वाली हैं. उप्र में किसी व्यक्ति की हत्या इस लिए कर दी जाती है कि लोगों को उसके गौ मांस खाने का शक था. इस व्यक्ति का पुत्र वायु सेना के लिए काम करता है. अब तक क्या किसी को इसके लिए सजा मिली है मुझे नहीं मालूम. यह घटना कुछ हद तक निर्भया केस के जैसा है। पुनः ऐसे और वारदात होते हैं जहाँ ऐसे ही कारणों के लिए भीड़ या कुछ लोग अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्या कर देते हैं. यह सरकार से ज्यादा हमारे समाज के व्यघटित होते मूल्यों का परिचायक है मगर मोदी सरकार उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी. उसे इसके विरोध में और सख्त व् मुखर होना चाहिए था. मोदी वैसे तो आरती करते हैं , त्रिपुण्ड लगा कर भाषण देते मगर कोई इस्लामिक पहनावे से परहेज करते हैं. मुझे यह सही नहीं लगता है. या तो वो अपने धार्मिक विश्वास का सार्वजनिक प्रदर्शन न करें इस फिर हर धर्म के प्रति एक जैसा सम्मान दिखाएँ. अगर कोई शासन व्यवस्था ऐसी हो जाती है जहाँ समाज का कोई हिस्सा अपने को दोयम दर्जे का नागरिक महशूश करने लगे तो यह राष्ट्र के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.</div>
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कश्मीर के आम नागरिक को भारत से जोड़ने के प्रयास में भी सरकार विफल लगती है. विपक्ष भी कोई बड़ी उम्मीद नहीं जगाता है. मगर मोदी की हार लिंचिंग भीड़ को हतोत्साहित करेगी और देश से कट रहे लोगों में ऐसा सन्देश आएगा कि समाज अब भी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के बारे में सजग है.</div>
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समस्या यह है की विपक्ष खुल कर इस मुद्दे पर जनता के पास नहीं जा रही है. वो अन्य बातें कहती है जो की असली मुद्दा नहीं है.</div>
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असली बात यह है की चुकि इस सरकार ने अल्पसंख्यकों में सुरक्षा और विश्वास का भाव भरने में असफल रही है इस लिए हम इसका विरोध करते हैं. बहुसंख्यक के हितों की रक्षा की जानी चाहिए मगर अल्पसंख्यकों को असुरक्षित कर नहीं. </div>
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कई बहुसंख्यक ऐसा मा न ने लगे थे कि उनकी अनदेखी की जा रही है र उनके जीवन शैली और संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं , यह स्थिति भी बदलनी चाहिए. भाजपा के जीत का यह प्रमुख कारण रहा है और विपक्ष दल को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिये.</div>
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कितना भी आर्थिक विकास हो और आर्थिक भ्रष्टाचार में कमी हो मगर इसकी कीमत सामाजिक तानेबाने को कमजोर करना है तो ह बहुत बड़ी कीमत है और हिंदुस्तान कुछ और दिन गरीबी सह सकता है भ्रष्ट नेताओं को झेल सकता है.</div>
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Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-35648275558064019942017-02-13T14:31:00.000-08:002017-02-13T14:31:08.990-08:00अहम् अौर ईश्वर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मानव तन असंख्य कोशिकाओं से बना है। हर कोशिका अपने आप में एक जीवित इकाई है। यह शरीर अनगिणत सूक्ष्म शरीर (कोशिकाओं) का मानो एक सुव्यवस्थित समाज है। हर कोशिका अपना काम निरंतर करती रहती है, बगैर इस शरीर के बोध के।<br />
<br />
यह शरीर चेतन है, यह चेतना हमें "अहं" का बोध देती है। मगर इस "अहं" का बोध इस शरीर को बनाने वाली किसी भी कोशिका को तो नहीं होता। कोशिकाएँ निजी स्तर पर चेतन नहीं होती हैं। कोशिकाएँ, जिनका अस्तित्व भौतिक स्तर पर एक निश्चित सत्य है इस "अहं" से अनभिज्ञ होती हैं। तो जिसे मैं "मैं" जानता हूँ, क्या वह सत्य नहीं है। नहीं, मुझे मलूम है कि "मैं" हूँ।<br />
<br />
इसी तरह यह जगत अनेक चेतन एवं अवचेतन इकाईयाँ का एक सुव्यवस्थित समाज है। मनुष्य उनमें से एक है। और ईश्वर इस जगत का अतिचेतन स्वरूप है। और हम उसके अस्तित्व से वैसे ही अनभिज्ञ जैसे कोशिका हमारे अस्तित्व से।<br />
</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-8585493971377822002016-11-05T02:48:00.002-07:002016-11-05T03:26:17.328-07:00एक साझा स्वप्न : नयागाँव में नया घर का ख्याल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारे परिवार की छोटी सी लंबी कहानी है।<br />
हमारी सबसे पुरानी स्मृति वेद की ऋचाएँ हैं, फिर रामायण- महाभारत के मिथकों की गलियों से गुजरते हम एक लंबी नींद में सो जाते हैं। अब जो याद है वह ४-५ पीढी़ से ज्यादा पुरानी नहीं है। भारत के पूर्वी प्रदेश बिहार में गंगा नदी के उत्तरी तट पर एक पुराना सा गाँव है- नयागाँव। नाम इस बात का पता देता है कि पुरातन सा दीखने वाला यह गाँव कभी नया था।<br />
<br />
हमारे पिता जी बिहार प्रदेश में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सर्वोच्च अभियंता पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उनकी मधुरतम स्मृति इसी नयागाँव से जुड़ी है जहाँ उनका बचपन गुजरा। माताजी का परिवार गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित एक गाँव से है जिसका नाम- "मराँची" - मेरे मन में सदैव एक कुतूहल बन कर रहा है कि क्या यहीं के लोग कभी पश्चिमी प्रदेश में सागर तट पर जा कर बसे और बस्ती को नाम दिया "कराँची"!! इस तरह माँ और पिता दोनों ही तरफ से हमारा गंगा तट के गाँव के प्रति एक अनुवांशिक आकर्षण रहा है।<br />
<br />
"इंगलिश समर"- आँग्ल देश में ग्रीष्म ऋतु सच में बेहद सुंदर होती है- और सबसे सुंदर साल २०१४ के अगस्त माह में , जब माँ और पिता जी महीने भर के लिये यहाँ आये थे। एक सुहानी उज्जवल सुबह, सुबह की चाय के बाद तरोताज़ा हो गपशप के सिलसिले में मन में दबी एक पुरानी ख्वाहिश कि "नयागाँव में एक नया घर हो" फिर से उभर आयी। मम्मी जो "भागवत- श्री कृष्ण" पढ़ रही थीं, ने अपनी सहमति एवं स्वीकृिति दी। इस स्वीकृिति ने जैसे सपनों में रंग भर दिया। पापा तो सहमत होने ही थे। बड़े और मंझले भाई साहेब को फोन लगाया गया। छोटी बहन राखी, जो कि अब प्रबंधन महाविद्यालय में प्राध्यापिका है, और इस परिवार की "conscience keeper", की सलाह माँगी गयी। मँझले भाई राजीव की प्रतिक्रिया कि यह फिर से बस बातों और ख्यालों का सब्ज़बाग भर तो नहीं, में छिपी उनकी भावनाओं की तीव्रता और स्वप्न को मूर्त रूप देने का संकल्प साफ झलक रहा था। बड़े भाई साहेब संजीव, की व्यवहारिक समझ और अनुभव ही प्रथम प्रश्न "घर हाँ पर कहाँ?" का सही उत्तर दे पाने में सक्षम थी।<br />
और इस तरह एक साझे स्वप्न और संक्लप का बीज सही समय की उर्वर जमीन में पड़ चुका था।</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-14536839601943339852016-11-05T02:48:00.000-07:002016-11-05T02:48:03.033-07:00एक साझा स्वप्न : नयागाँव में नया घर का ख्याल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारे परिवार की छोटी सी लंबी कहानी है।<br />
हमारी सबसे पुरानी स्मृति वेद की ऋचाएँ हैं, फिर रामायण- महाभारत के मिथकों की गलियों से गुजरते हम एक लंबी नींद में सो जाते हैं। अब जो याद है वह ४-५ पीढी़ से ज्यादा पुरानी नहीं है। भारत के पूर्वी प्रदेश बिहार में गंगा नदी के उत्तरी तट पर एक पुराना सा गाँव है- नयागाँव। नाम इस बात का पता देता है कि पुरातन सा दीखने वाला यह गाँव कभी नया था।<br />
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हमारे पिता जी बिहार प्रदेश में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सर्वोच्च अभियंता पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। उनकी मधुरतम स्मृति इसी नयागाँव से जुड़ी है जहाँ उनका बचपन गुजरा। माताजी का परिवार गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित एक गाँव से है जिसका नाम- "मराँची" - मेरे मन में सदैव एक कुतूहल बन कर रहा है कि क्या यहीं के लोग कभी पश्चिमी प्रदेश में सागर तट पर जा कर बसे और बस्ती को नाम दिया "कराँची"!! इस तरह माँ और पिता दोनों ही तरफ से हमारा गंगा तट के गाँव के प्रति एक अनुवांशिक आकर्षण रहा है।<br />
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"इंगलिश समर"- आँग्ल देश में ग्रीष्म ऋतु सच में बेहद सुंदर होती है- और सबसे सुंदर साल २०१४ के अगस्त माह में , जब माँ और पिता जी महीने भर के लिये यहाँ आये थे। एक सुहानी उज्जवल सुबह, सुबह की चाय के बाद तरोताज़ा हो गपशप के सिलसिले में मन में दबी एक पुरानी ख्वाहिश कि "नयागाँव में एक नया घर हो" फिर से उभर आयी। मम्मी जो "भागवत- श्री कृष्ण" पढ़ रही थीं, ने अपनी सहमति एवं स्वीकृिति दी। इस स्वीकृिति ने जैसे सपनों में रंग भर दिया। पापा तो सहमत होने ही थे। बड़े और मंझले भाई साहेब को फोन लगाया गया। छोटी बहन राखी, जो कि अब प्रबंधन महाविद्यालय में प्राध्यापिका है, और इस परिवार की "conscience keeper", की सलाह माँगी गयी। मँझले भाई राजीव की प्रतिक्रिया कि यह फिर से बस बातों और ख्यालों का सब्ज़बाग भर तो नहीं, में छिपी उनकी भावनाओं की तीव्रता और स्वप्न को मूर्त रूप देने का संकल्प साफ झलक रहा था। बड़े भाई साहेब संजीव, की व्यवहारिक समझ और अनुभव ही प्रथम प्रश्न "घर हाँ पर कहाँ?" का सही उत्तर दे पाने में सक्षम थी।<br />
और इस तरह एक साझे स्वप्न और संक्लप का बीज सही समय की उर्वर जमीन में पड़ चुका था।</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-83277047133908761592016-02-13T09:55:00.000-08:002016-02-13T09:55:47.968-08:00भारत: कौन अौर किसका?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-family: Helvetica;">भारत के इतिहास का अध्यन मेरे मन को दुखी कर देता है. इसमें, कदम कदम पर पराजय और मौकों को गवाने की कहानी है. बार .बार वे लोग हार जाते हैं जो इस जमीन और यहाँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं. </span><span style="font-family: Helvetica;">सिन्धु घाटी की सभ्यता का लोप शायद बाहर से आये आक्रामक आर्यों के आक्रमण से हुआ.</span><span style="font-family: Helvetica;">यहाँ के मूल निवासी पराजित हुए और इसी देश में दुसरे दर्जे के लोग बन कर सदियों से जीते रहे.</span><span style="font-family: Helvetica;">बौध धर्म का उदय और विस्तार हुआ, प्रचलित पाम्परिक धर्म भी चलता रहा. यह स्थिति शायद अच्छी थी. मगर क्रमशः सामाजिक दोषों से देश ग्रस्त होता गया.</span><span style="font-family: Helvetica;">इस्लामिक आक्रमण हुए और आक्रमणकारी विजयी हुए. जो मुस्लमान यहीं के हो गए और जब उन्होंने बाहरी आक्रमण का सामना किया तो हार गए. महमूद घज्नवी, मोहम्मद घोरी, बाबर, अहमद शाह अब्दाली बहार से आये विजेताओं की फेहरिस्त हैं. इनके विजयी होने का हमारे इतिहास पर बड़ा व्यापक असर हुआ है. पानीपत की तीन लड़ाइयों ने इतिहास का रुख बदल दिया और तीनों बार जो हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वे हार गए.</span><span style="font-family: Helvetica;">फिर अंग्रेजों का आना हुआ और आश्चर्य होता है की वो भी जीत गए. उनके जाते जाते पकिस्तान बन गया. देश का बहुत बड़ा हिस्सा यहीं के लोगों के लिए विदेश हो गया. </span><span style="font-family: Helvetica;">आज बचे हुए भारत में लोकतंत्र है जिस पर मुझे गर्व और ख़ुशी होती है. मगर यह देश संकटों से ग्रस्त दीखता है. बहुत बड़ी आबादी असंतुष्ट है. </span><span style="font-family: Helvetica;">मैं चाहता हूँ की भारत बचा रहे और यहाँ की संस्कृति बची रहे. यह देश बढे और विस्तार करे.</span><span style="font-family: Helvetica;">चाहता हूँ की पाकिस्तान और बंगलादेश भी हमारे दुश्मन न होकर हमारे ही बंधू हमारे ही लोग हों.</span><span style="font-family: Helvetica;">मगर यह क्या है जो मैं बचाना चाहता हूँ? मैं किसका विस्तार चाहता हूँ? मैं किस संस्कृति की बात कर रहा हूँ? क्या मैं "हिन्दू" धर्म और इसकी व्यवस्था को बनाये और बचाना चाहता हूँ ? क्या मैं इसका विस्तार चाहता हूँ? शायद हाँ शायद नहीं.</span><span style="font-family: Helvetica;">अगर सोचूँ तो लगता है की समय समय पर बाहर के लोगों और उनके विचारों का इस देश में आना हमारे देश को समृद्ध और सम्पूर्ण बनाता है. इस्लाम और अंग्रेजो से जो हमारा गहरा मिलना जुलना हुआ है उससे बहुत कुछ अच्छा हुआ है. हम बेहतर हुए हैं. अगर किसी तरह यह आचार विचारों का मिलन बगैर पराजित और परतंत्र हुए हो सकता तो अच्छा होता. मगर यह तो इतिहास है हम इसे बदल नहीं सकते. </span><span style="font-family: Helvetica;">बदलना अच्छा है और यही समाज को जीवंत रखता है. इसमें मुझे कोई शक नहीं. तो फिर मुझे क्यों बुरा लगेगा अगर पूरा देश बदल कर इंग्लिश बोलने लगे या धर्म परिवर्तन कर लें. मैं इंग्लिश जानता हूँ और बोलता पढता भी हूँ. और यह अच्छा है बुरा नहीं. </span><span style="font-family: Helvetica;">आप क्या सोचते हैं??????</span></div>
</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-56598735156451858192016-01-02T00:23:00.000-08:002016-01-02T00:23:17.146-08:00नव वर्ष की शुभकामनाएँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नव वर्ष की शुभकामनाएँ!<br />
साल २०१५ बीत चुका है और हम सभी नए वर्ष की ओर एक नई आशा के साथ बढ़ चले हैं। मैं लंबे समय के बाद वर्धमान के माध्यम से आपसे मुखातिब हूँ। आशा करता हूँ कि नये साल में यह सिलसिला पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर और नियमित होगा।<br />
ब्लॉग के माध्यम से बहुत से ऐसे शख्स से जुडऩे का मौका मिला जिन्होंने मन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। इनमें प्रमुख रहें हैं- ज्ञानदत्त पांडे जी, प्रवीण पांडे जी, नीरज जाट जी, कविराय जोशी जी, मनोज जी , करण समस्तीपुरी जी, और भी बहुत से लोग। नये वर्ष में आप सभी सपरिवार स्वस्थ रहें, सुखी रहें ऐसी कामना करता हूँ।<br />
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<br />
<br /></div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-53758136184569643902014-07-12T23:32:00.002-07:002014-07-12T23:32:45.045-07:00ऑक्सफ़ोर्ड और श्रीमद्भगवद गीता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h3 style="text-align: left;">
ऑक्सफ़ोर्ड और कैंब्रिज ब्रिटेन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में शिक्षा के प्रमुख केन्द्रों में से एक हैं. मुझे याद नहीं है कि कैसे मैंने पहली बार जाना था की ऑक्सफ़ोर्ड स्थित OCHS के बारे मे। यह है- ऑक्सफ़ोर्ड सेंटर फॉर हिन्दू स्टडीज।<br />यह ऑक्सफ़ोर्ड से जुड़े कई शिक्षाविदों द्वारा चलाया जाने वाला एक केंद्र है जो हिन्दू धर्म और इसकी संस्कृति के अध्ययन में रत है. समय समय पैर यह लंदन और अलग अलग शहरों में हिन्दू धर्म के विषयों पर शैक्षणिक वार्ता का भी आयोजन करता रहता है. कुछ वर्ष पूर्व इसने अमिताभ बच्चन को आमंत्रित कर उन्हें सम्मानित भी किया था।</h3>
<h3 style="text-align: left;">
OCHS के द्वारा आप हिन्दू धर्म से जुड़े कई विभिन्न विषयो पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम में भी शामिल हो सकते हैं, मगर यह निशुल्क नहीं है. पिछले साल मैंने वेद और उपनिषद के पाठ्यक्रम में शामिल भी हुआ था। </h3>
<h3 style="text-align: left;">
इस साल मैंने भगवद गीता के अध्ययन का चुनाव किया है. यहाँ थोड़ा फर्क है की आप गीता का अध्ययन सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि शैक्षणिक विश्लेषक के दृष्टिकोण से कर रहे होते हैं.<br /><a data-ved="0CAUQjRw" href="http://www.google.co.uk/url?sa=i&rct=j&q=&esrc=s&source=images&cd=&docid=P7HpGWZsuTMI9M&tbnid=mzaPNtopG9fU_M:&ved=0CAUQjRw&url=http%3A%2F%2Fwww.ochs.org.uk%2F&ei=biXCU8HlNeSh0QXfpoCYCQ&bvm=bv.70810081,d.d2k&psig=AFQjCNEWDCPZ6bshP9I55vCh30YhI5rsHQ&ust=1405318852139071" id="irc_mil" style="border: 0px; margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img height="145" id="irc_mi" src="http://www.ochs.org.uk/sites/g/files/g383876/themes/mythemes/acq__22oct2012/images/OCHS-250PX_2.png" style="-webkit-background-size: 21px; -webkit-box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.65098) 0px 5px 35px; background-color: white; background-image: linear-gradient(45deg, rgb(239, 239, 239) 25%, transparent 25%, transparent 75%, rgb(239, 239, 239) 75%, rgb(239, 239, 239)), linear-gradient(45deg, rgb(239, 239, 239) 25%, transparent 25%, transparent 75%, rgb(239, 239, 239) 75%, rgb(239, 239, 239)); background-position: 0px 0px, 10px 10px; background-size: 21px; border: 0px; box-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.65098) 0px 5px 35px; margin-top: 124px;" width="250" /></a><br /><br />श्रीमान निक Sutton इस कोर्स के प्रमुख प्राध्यापक हैं. एक इंग्लिश व्यक्ति की हिन्दू धर्म के ऊपर इतनी गहरी पकड़ बेहद प्रभावित करती है. कई बार मैं उनके दृष्टिकोण से पूरी तरह सहमत नहीं हो पाता हूँ क्योंकि एक हिन्दू धर्मावलम्बी होने के कारण मेरी अपनी धारणाएं हैं जो की शिक्षाविदों के दृष्टिकोण से विपरीत हो सकती है. उदहारण के तौर पर - मेरे लिए यह बिलकुल ही मुश्किल है मान पाना कि गीता बौद्ध धर्म के उदय के उपरांत रची गई थी। मैं अब भी इसके पक्ष और विपक्ष के प्रमाण ढूंढने की कोशिश कर रहा हूँ. कई बार कोई ऐसी बात सुनते ही लगता है कि यह पाश्चात्य विद्वानों की पूर्वाग्रहग्रस्त मानसिकता का प्रमाण है बस और कुछ नही. मगर हमारा यह दृष्टिकोण सकारात्मक नही है बल्कि हमें भी प्रमणिकता के आधार पर अपनी धारणा बनानी चाहिए. हालाँकि मैं अब भी इससे सहमत नहीं हूँ.<br />खाई आप को भी अगर वक्त मिले तो OCHS के वेबसाइट पर जरूर आएं और श्री निक सुट्टों को जरूर सुनें. प्रस्तुत है यह लिंक :<br />http://www.ochs.org.uk</h3>
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Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-2604093143679941382014-01-27T14:58:00.000-08:002014-01-27T14:58:22.132-08:00सरदार -- तुर्की नाई <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="font-size: large;">साल से ऊपर हो गया जब हम पूर्वी लन्दन के ईस्ट हैम से घर बदल कर बार्किंग आ गए थे। अगर मैं कहूँ कि साल भर से जयादा हो गया है और मैं किसी नाई की दुकान पर नहीं गया तो आप हैरान होंगे और यह भी सोच सकते हैं कि मैं सिख/ सरदार जी तो न हो गया। </span><br />
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/-Rpl_LAdJ4gc/Uubjnpt4FhI/AAAAAAAACzg/hBCj3qN21Nc/s1600/Barking+and+Dagenham-20130803-00248.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><span style="font-size: large;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-Rpl_LAdJ4gc/Uubjnpt4FhI/AAAAAAAACzg/hBCj3qN21Nc/s1600/Barking+and+Dagenham-20130803-00248.jpg" height="238" width="320" /></span></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span style="font-size: large;">बार्किंग में नया ठिकाना </span></td></tr>
</tbody></table>
<span style="font-size: large;">बात यह थी कि जब सर पर बाल कम रह गए तो सोचा कि अब कोई स्टाइल कि बात तो है नहीं तो फिर क्यों न trimmer से खुद ही बाल काट लूं। और ऐसा ही होता रहा।</span><br />
<span style="font-size: large;">नन्हे मियाँ के भी बाल घर पर ही कटते रहे। पर अब लगने लगा था कि यह सही नहीं है औए शायद उसे भी एहसास होने लगा था कि उसके बाल कटाई में वो बात नहीं जो उसके कई साथियों में। </span><br />
<span style="font-size: large;">खैर पिछले सप्ताह से ही उसका उत्साह बना था कि आने वाले रविवार को स्विमिंग पूल और barber के पास जाना है। </span><br />
<span style="font-size: large;">सुबह तरणताल ले जाने का वादा निभाकर मैं थक कर सो गया था। जब जागा तो चार से ज्यादा बज चुका था और दिन का उजाला अब थोड़े समय का मेहमान था।</span><br />
<span style="font-size: large;">मैं और सम्यक - छोटे मियां - झट पट निकल पड़े एक अदद नाई की खोज में। बार्किंग नगर केंद्र ( सिटी सेंटर ) के पास कार पार्क की और पैदल चले अपनी खोज पर। शीघ्र ही एक दूकान दिखी - पर उसमे काटने और कटवाने वाले सभी एफ्रो- कैरिबियन मूल के थे और मुझे लगा कि थोडा और देख लूं - अगर न कुछ मिला तो यहीं वापस आ जाऊँगा। मगर फिर जल्दी ही एक और दूकान दिखी जो शायद एशियाई या ईस्ट यूरोपियन हो ऐसा लगा। हमने इसकी सेवा लेने का निर्णय कर अंदर चले आये। </span><br />
<span style="font-size: large;">बातों बातों में पता चला कि नाइ जी टर्की मूल के हैं. मैं उनके काम और उसके प्रोफेशनलिज्म से बहुत प्रभावित था। पता चला कि वो होमोर्टन हॉस्पिटल के आईटी विभाग में भी काम करते हैं और बचे समय में अपने खानदानी व्यवसाय में भी हाथ बटाते हैं- हर रोज़- शाम के ६ के बाद और शनिवार/ रविवार को और भी लम्बे समय के लिए।</span><br />
<span style="font-size: large;">मैंने यह जताने के लिए कि मुझे टर्की के बारे में ज्ञान है मैंने पूछा क्या आप अंकारा से हैं? और उनका जवाब था नहीं फिर उन्होंने एक दुसरे शर का नाम बताया जो मुझे अब याद नहीं है पर वो शार टर्की और सीरिया की सीमा पर है. फिर थोड़ी बात सीरिया के मौजूदा हालत पर भी निकल आई। पर ज्यादा बढी नहीं।</span><br />
<span style="font-size: large;"> मैंने पूछा - क्या टुर्की भाषा अरबी से मिलती जुलती है है ? तो उनका जवाब था "नहीं- बल्कि यह लैटिन के ज्यादा करीब है। हम अरबी लोगो पर यकीन नहीं कर सकते। तुर्की नेता कमाल अत तुर्क ने अरबी जुबा और उसके पूरे तहज़ीब पर रोक लगा दी थी - और अब हालांकि कुछ कोशिश होती है कि फिर से टर्की में फिर से अरबी तहज़ीब को बढ़ावा मिले पर इसे कोई खाद समर्थन नहीं मिल रहा। "</span><br />
<span style="font-size: large;">इनका जवाब मेरी आशा के विपरीत था. </span><br />
<span style="font-size: large;">मैंने उनका नाम पुछा तो जवाब था-"सरदार". मुझे हैरानी हुई और कहा कि हमारी जुबान में इसका मतलब लीडर होता है तो उन्होंने कहा "मुझे मालूम है भारत के "सरदार जी" बारे मे।" और पता चला कि तुर्की भाषा में भी सरदार का मतलब कमांडर ही होता है। तो सरदार शब्द तुर्की भाषा से हिंदी में सामिल हुआ है!</span><br />
<span style="font-size: large;">फिर एक और मज़ेदार अनुभव हुआ। उसने एक छोटी सी मशाल जैसी चीज़ निकाली, उसे स्पिरिट में डुबाया - मैं हैरानी से देख रहा था। उसने उसमे आग लगाई और गर्म लौ से कान के बालों को झुलसाने लगा। यह एक नया तजुर्बा था - हैरानी भरा और सुखद - सर्द मौसम में उष्म अनुभव। फिर मिलने का वाद कर हम विदा हुए। </span><br />
<span style="font-size: large;">चलते चलते सम्यक ने उसे लोल्ली देने के वादे की याद दिलाई और अपना पुस्कार पा खुशी खुशी उमंग भरे क़दमों से बाहर निकल आया। </span><br />
<span style="font-size: large;">नीचे दिया लिंक आपको भी इस तुर्की इल्म का एहसास देगा </span><br />
<span style="font-size: large;">http://www.youtube.com/watch?v=F3z6_kz_wOU</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
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Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-87140954452583688792013-06-02T14:14:00.000-07:002013-06-02T14:14:51.188-07:00आधुनिक मानव <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आधुनिकता को परिभाषित कर पाना सरल नहीं है। आम तौर पर पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण आधुनिकता का पर्याय माना जाता है। अगर मैं अपने मन में गहरे उतर कर इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश् करूँ तो एक बात जो उभर कर सामने आती है वो है कि मनुष्य जो पूर्वाग्रहों से मुक्त है वही आधुनिक है। <br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-Dz_GInEbweI/UauqMhtqHYI/AAAAAAAACxM/J34Fj8umGBQ/s1600/happy-man-suit-shopping-bags-hands-23731533.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="http://3.bp.blogspot.com/-Dz_GInEbweI/UauqMhtqHYI/AAAAAAAACxM/J34Fj8umGBQ/s320/happy-man-suit-shopping-bags-hands-23731533.jpg" width="320" /></a>देश, धर्म, जाति, लिंग आदि से जुड़े जो पूर्वाग्रह हैं उनसे मुक्त होना आधुनिक होने की पहली आवश्यकता होगी . मेरे विचार में आधुनिक मानव को एक बेहतर और सफल मानव भी होना ज़रूरी है। तो इस से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पूर्वाग्रहों से मुक्ति हमें बेहतर और सफल बनाती है।<br />
<br />
कहीं न कहीं यह भी अवधारणा बन गई है कि आधुनिक मनुष्य उपभोक्तावादी होता है. जो उपभोग के नए नए वस्तुओं को अपने जीवन में आत्मसात कर रहा हो वही आधुनिक है. मैं इससे सहमत नहीं हो सकता कि उपभोगवादी होना आधुनिक होने की पहचान है । मगर यह भी मनाता हूँ की ऐसी अवधारणा बन जाने के पीछे वजह यह रही होगी कि उपभोगी होना परोक्ष रूप से मनुष्य के आर्थिक रूप से सफल होने का प्रमाण है और हम मानते हैं की आधुनिक मनुष्य सफल मनुष्य है- आर्थिक तौर पर भी। <br />
<br />
अब लग रहा है कि बात आगे निकल कर महज आधुनिक होने की जगह सफल मनुष्य होने की होती जा रही है। तो अगर ऐसा सोचें कि "आधुनिक सफल मानव कौन है?" इसकी क्या पहचान है? पूर्वाग्रहों से मुक्त होना निश्चय ही एक आयाम हो सकता है. इसके अलावा जो जिन्दगी सही तरीके से जीना जानता हो और नए उद्भाषित तथ्यों को स्वीकार कर लेने में सक्रीय और सक्षम हो। <br />
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महर्षि अरविन्द ने अतिमानव की कल्पना की थी। अतिमानव - ही आधुनिक मानव होगा. तो फिर यहाँ बात मन और आध्यात्म की उठेगी . मगर आधुनिक मानव किसी भी बात जो सत्य प्रमाणित नहीं है उसमे यकीन नहीं कर सकता . ध्यान और मानसिक अवस्थाएं, मानसिक बल और कमजोरियां कोई काल्पनिक बातें नहीं बल्कि यथार्थ है। आधुनिक मानव वही है जो मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिमान है.<br />
<br />
आधुनिक मानव जाति सतत वर्धमान है. वह साहसी है और विजयी है. वह जो बृहत् सत्य को समझता है जिसकी दृष्टि दूर अक देख सकती है और वह सिर्फ स्वयं ही नहीं बल्कि समष्टि के कल्याण के लिए कर्मरत है और सफल भी .<br />
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-atucuUaDkw4/UauqQduGd9I/AAAAAAAACxU/o1dSAejYHyA/s1600/modern+man.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="228" src="http://2.bp.blogspot.com/-atucuUaDkw4/UauqQduGd9I/AAAAAAAACxU/o1dSAejYHyA/s320/modern+man.jpg" width="320" /></a></div>
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Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-73737803561857141762013-05-12T01:52:00.001-07:002013-05-12T01:52:24.281-07:00गर्म होती धरती <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-GIEGjK3Yyq4/UY9XsXH7mEI/AAAAAAAACw8/DR58XcccOXY/s1600/desert5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="173" src="http://3.bp.blogspot.com/-GIEGjK3Yyq4/UY9XsXH7mEI/AAAAAAAACw8/DR58XcccOXY/s320/desert5.jpg" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
इस सप्ताह एक खास खबर है की वातावरण में co 2 की मात्रा 4 0 0 p p m को पार कर चुका है. ऐसा पहले ३० लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब आदमी का अस्तित्व भी नहीं था। काफी समय से वैज्ञानिक हमें सावधान करते आयें हैं कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्र बढती जा रही है मगर विडंबना यह है कि इसके बढ़ने की दर पिछले ३ दशक में और ३ गुना हो गई है. कोई शक नहीं है कि कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से धरती का तापमान बढ़ता है. आज से पहले जब ये हालत थे तो समुद्र का तल ४० मीटर ऊपर था। <br />
<br />
धरती के बढ़ते तापमान का असर व्यापक होगा। रेगिस्तान फैलेगा, मौसम उलटे पुल्टे होंगे , समय पर बारिश नहीं होगी और बाढ या सूखे की स्थिति बनी होगी। बड़े स्तर पर मानवों का पलायन होगा। इससे युद्ध और कल्हकी स्थिति उत्पन्न होगी।<br />
<br />
हालात है कि मरीज़ को मालूम है कि स्थिति बिगड़ रही है मगर परहेज़ फिर भी नहीं कर रहा। हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर छुपाए हैं . बस सोचते हैं कि हमारे जीवन काल में तो ऐसा नहीं होगा. मगर हमारे बच्चों का क्या होगा.? <br />
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मुझे तो लगता है कि हमारे जीवन काल में ही व्यापक असर दीखने को मिलेन्गे . <br />
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इस रस्ते में सबसे बड़ी रुकावट देश की परिकल्पना है. हम एक धरती औए उसके लोग की तरह न सोच कर अपने अपने देश की सोचते है<br />
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अगर धरती को बचाना ही तो देशों को मरना होगा. जब सवाल ऐसे गंभीर हों तो देशो का मुद्दा हास्यास्पद लगने लगता है कि लद्दाख में तम्बू किसने लगाये हैं .</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-86636063670839424542013-03-14T00:16:00.000-07:002013-03-14T00:16:14.272-07:00अपनी भाषा के लिए आवाज़ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारी सरकार ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा से हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा की अनिवार्यता को ख़त्म कर अंग्रेजी को न सिर्फ अनिवार्य करने का फैसला किया है बल्कि अंग्रेजी का ज्ञान चयन में निर्णायक होगा।<br />
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आयें हम इस पर विचारें और अगर सही लगे तो जहाँ संभव हो विरोध दर्ज करें .<br />
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लिंक है जनसत्त पर मृणालिनी शर्मा जी का लिखा एक लेख.<br />
<a href="http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/40665-2013-03-12-06-31-52">http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/40665-2013-03-12-06-31-52</a><br />
</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-33986786258940519342013-01-07T14:35:00.000-08:002013-01-07T14:35:02.145-08:00मो-बोला-जी : जो जन्म से ही संपन्न हो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ईसाईयों का एक सम्प्रदाय है "येहोवा विटनेस". भारत में रहते हुए मैं इससे परिचित न था। मैंने गोवा में करीब 9 वर्ष बिताये थे और वहां की संस्कृति व् ईसाइयत को करीब से जाना था मगर इसका पता न था। <br />
<br />
मोबोलाजी जिन्हें लोग आसानी के लिए "बीजे" बुलाते हैं, इस सम्प्रदाय को मानने वाले हैं और इत्तिफाक से गुजरे गर्मी के मौसम में उनसे मुलाकात हुई। तब से ही हम लगातार मिलते रहे हैं।और मैं बाइबिल के बारे में बहुत कुछ सीख व् जान रहा हूँ।<br />
<br />
मोबोलाजी का जन्म नाइजीरिया में हुआ था और पिछले 7 वर्षों से ब्रिटेन में रह रहे हैं। वो 6 फीट के लम्बे और बेहद शालीन इंसान हैं।<br />
<br />
हम बात कर रहे थे soul एवं spirit की। इनका धर्म, आत्मा के अस्तित्व में वैसा विश्वास नहीं रखता जैसा की अधिकतर भारतीयों का है। फिर ये तो मानते हैं कि शरीर से पृथक Spirit है , और इसके बिना शरीर जीवन हीन है। मगर यह स्पिरिट वैसे ही है जैसे कि रेडियो में बिजली। बिजली के बिना रेडियो मृत है मगर जो बिजली इस चलाती है , उसका रेडियो से कोई निजी रिश्ता नहीं है। <br />
<br />
खैर अंत में बात चल पड़ी कि बीजे आपका असल नाम क्या है? और मैंने जाना कि उनका नाम मोबोलाजी है जो की नाइजीरिया की एक भाषा येरोबा का शब्द है। और इसका है जिसका जन्म सम्पन्नता के साथ हुआ हो। <br />
<br />
इनकी धर्मपत्नी भी वैसे तो नाइजीरिया की हैं मगर उनकी मातृभाषा अलग है उरुबो । वो आपस में अंगरेजी में ही बात हैं। बच्चों के नाम नाइजीरियाई भाषा के न हो कर सामान्य अन्ग्रेजी नाम हैं। और उन्हें येरोबा भाषा का ज्ञान न के बराबर है। नाइजीरिया भाषा की दृष्टि से भारत की की तरह विभिन्नता से भरा है। यह देश अफ्रीका के पश्चिम तट पर तेल संपदा से संपन्न देश है।<br />
<img height="403" id="il_fi" src="http://www.learnnc.org/lp/media/uploads/2008/07/nigeria_linguistic_1979.jpg" style="padding-bottom: 8px; padding-right: 8px; padding-top: 8px;" width="483" /><br />
हमारे बच्चों का हिंदी ज्ञान भी बेहद काम चलाऊ ही जा सकता है। <br />
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लुप्त होती प्रजातियों की तरह कई संस्कृतियाँ भी तेजी से लुप्त होती जा रहीं हैं। भाषा संस्कृति की spirit है। किसी भी संस्कृति से अगर उसकी भाषा छीन ली जाय तो वह संस्कृति वैसे ही धूल में मिल जायगी जैसे की प्राण के बिना शरीर।<br />
<br />
हमारी बात इस बात के साथ ख़त्म हो गई। भारतीय भाषा के बिना भारतीय संस्कृति निष्प्राण हो जायगी।<br />
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Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-85733843800932802402013-01-01T01:35:00.000-08:002013-01-01T01:35:18.772-08:00नई रोशनी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
एक लम्बे समय से मैं ने ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं है। पिछले एक साल में काफी कुछ बदला भी है। <br />
मेरे लिए यही बड़ी बात होगी कि मैं इस लम्बे रुके हुए क्रम को तोड़ सकूँ।और यह ब्लॉग बस इसी का प्रयास है।<br />
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ख़बरों में दिल्ली में हुई दुखद दर्दनाक घटना की गूँज हर कहीं है। अलग अलग लोग अलग अलग विचार रखते रहे हैं।Guardian इंग्लैंड का एक प्रतिष्ठित अखबार है और इसमें यहाँ के लोगों ने भी इस समाचार के उपर विस्तार से लिखा है। भारत और इसके समाज व् संस्कृति की खूब शिकायत लिखी गई है। यह खबर ही ऐसी है कि शिकायत तो होनी ही चाहिए। कई बार जब कोई दूसरा आइना दिखाए तो हकीकत और सफाई से दिखाई देता है। और मन को चोट भी गहरी लगती है।<br />
<br />
मैंने अपनी पहचान खोता जा रहा हूँ , और मैं कहीं किसी से जुड़ा नहीं समझा जा सकता भले ही मेरे मन की हालत कुछ और हो। सच यह है की यहाँ के अखबारों में जो लिखा था उससे बहुत बुरा लगा और अपने मन की बात कहीं तो कह सकूं इस लिए आपके पास लौट आया।<br />
<br />
खैर नया साल नई रौशनी लाये हम सबों के लिए।</div>
Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-17902724695353136942012-03-22T15:28:00.001-07:002012-03-22T15:28:41.590-07:00छिद्रान्वेषण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मानव मन की कमजोरियां जिसके बारे में अक्सर हम सुनते आये हैं वो है "काम क्रोध मद मोह लोभ" आदि. कहीं संस्कृत के पाठ में पढ़ा था कि एक दोष है जिससे बचना चाहिए और वो है-
छिद्रान्वेषण अर्थात दोष ढूँढने की प्रवृत्ति .</span></div>
<div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-KXs6JS1DD_E/T2uibuepIJI/AAAAAAAACtY/3s41x7ep6Gk/s1600/hawk.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://3.bp.blogspot.com/-KXs6JS1DD_E/T2uibuepIJI/AAAAAAAACtY/3s41x7ep6Gk/s320/hawk.jpg" width="320" /></a></div>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">फिर न जाने कब मन में कब यह बात बैठ गई कि दुनिया को या अपने परिवेश को सुन्दर बनाना है तो हर समय पैनी नज़र रखनी होगी कि कहाँ क्या गलत है उसका </span><span style="font-size: large;">प्रतिकार और विरोध किया जाय. बात भी सही लगती है.य़ेही है क्रांति का सूत्र. दोष ढूंढो और पिल पड़ो.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">खैर हमने तो कोई क्रांति ना की मगर एक लत सी पड़ गई दोष देखने की. पहले तो खुद में दोष ढूंढता रहा कुछ सुधरने की कोशिश भी की मगर ज्यादा आत्मग्लानि ही हुई और सुधार कम. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">काम के परिवेश में भी ऐसा होने लगा कि लोगों के किये में दोष ही ज्यादा नज़र आने लगा, उनकी उपलब्धियां और निष्ठा कम. ऐसा लगने लगता है कि जो सही किया जा रहा है वो तो स्वाभाविक है, पता करने की बात तो यह है कि गलत क्या है -तभी तो नज़र पारखी कहलायेगी.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">परिवार एकल हो गया और मैं सर्वे सर्वा. मुझे आइना दिखाने वाले दादा, ताऊ और बाबू जी तो साथ हैं नहीं और मैं पिता या पति के रूप में एक अधिकार और प्रभाव का अवतार बन जाता हूँ.. उम्र और अनुभव की दृष्टि से आप सबसे बड़े हो जाते हैं. ऐसे में यह बुराई खूब नुकशान पहुँचाती है. धीरे धीरे यह पूरे माहौल को कडुआ और कसैला कर देता है. श्रीमती जी की बनाई रसोई में आप यह ढूँढने लगते हैं कि क्या बेहतर हो सकता था. बच्चों के प्रयास औए कार्यों में भी पारखी नज़र बस य़ेही देख पाती है कि कहाँ सुधार की आवश्यकता है. और फिर आप चुप भी नहीं रह सकते; नहीं तो क्रांति कैसे आयेगी? सुधार का परिवर्तन चक्र कैसे गतिमान होगा?</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मेरे एक वरीय सहयोगी हैं डॉ मैथ्यू . उनके कमरे में कई सूक्तियां लगी होती हैं. उनमे से एक जिसने मुझे प्रभावित किया है वह है "आप हर किसी जिनसे मिलते हैं उनके प्रति दया का भाव रक्खें क्योंकि हर कोई अपने स्तर पर अपनी एक मुश्किल जंग लड़ रहा है." फिर नज़र बदले सी लगी. जिसे मैं विभाग में सबसे बड़ा निकम्मा समझता था उनकी मजबूरियों और सीमाओं का एहसास होने लगा.उनके दोष घुलने लगे.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अचानक बापू के तीन बंदरों का अर्थ समझ में आने लगा. छिद्रान्वेषी सिर्फ एक कडुआ कसैला व्यक्तित्व हो सकता है कोई क्रांतिकारी या सुधारक नहीं. जिन्दगी कितनी सुन्दर और अपनापन भरी हो जाती है जब हम छिद्रों के अन्वेषण में वक्त और सामर्थ्य जाया न कर के जो सुन्दर है, निष्ठा और प्रयासों का फल है उसके प्रति सजग हो जाते है. </span></div>
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-TPBTte4nIpk/T2ujrl-9upI/AAAAAAAACtg/YQzpGGhN8iY/s1600/Monkeys.preview.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="268" src="http://1.bp.blogspot.com/-TPBTte4nIpk/T2ujrl-9upI/AAAAAAAACtg/YQzpGGhN8iY/s320/Monkeys.preview.jpg" width="320" /></a><span style="font-size: large;">दूसरों में दोष ढूंढना सिर्फ तभी ठीक है जब आपसे इसका आग्रह किया जाय. इसी लिए कहते है की मुफ्त के कोच बनने से बचें.</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">तो आयें इस छिपे अनजाने से दोष से बचें और एक बेहतर जिन्दगी से रूबरू हों. शुभकामनायें..</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;"> </span></div>
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</div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-45239666609223327092012-03-06T12:25:00.000-08:002012-03-06T12:25:00.754-08:00रंग भरी होली: बहुरंगी दुनिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-HBPRpRzermU/T1ZycMGgIFI/AAAAAAAACsc/uPm4R5Y4GEE/s1600/holi.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-HBPRpRzermU/T1ZycMGgIFI/AAAAAAAACsc/uPm4R5Y4GEE/s1600/holi.jpg" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">हर कोई अपनी जंग लड़ रहा है. इसमें साथी की भी खोज होती है, और दुश्मन भी पहचाने जाते हैं. भय और शक से धुंध हुई दृष्टि दोस्त और दुश्मन को पहचानने में भूल करती है. फिर पश्चाताप होता है </span><br />
<br />
<span style="font-size: large;">हम अपनी पहचान खोज रहे होते हैं और अक्सर इस खोज में - कुछ अपना बनाने के क्रम में काफी कुछ गवां देते हैं, पराया मान लेते हैं. कुछ बचाने की चाहत में काफी कुछ मिटा डालने को तैयार हो जाते हैं. अंत में पश्चाताप होता है. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">अपने से अलग जो है उसे स्वीकार करना उसकी पूरी इज्ज़त के साथ, ये ही गारंटी है हमारी इज्ज़त और वजूद के बचे रहने की. कोई मज़ा नहीं एक रंगहीन दुनिया का. </span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">यकीन रखना होगा कि जो सच और सुन्दर है वही बचेगा, शेष काल के ग्रास बनेंगे, और मोह रख कर भी हम उसे बचा न पाएंगे.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">हम सहज हों . कुछ पराया नहीं, सब कुछ हमारी ही विरासत है, विभिन्नता ही सौंदर्य को जीवित रखती है. हम और हमारा समाज सुन्दर हो. एकरंग नहीं - चाहे लाल या हरा. होली की शुभकामनायें - ढेरों रंगों भरी.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
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<span style="font-size: large;"><br /></span></div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-73306965506730205282012-03-02T22:35:00.001-08:002012-03-02T22:35:51.270-08:00शरीर विज्ञान के मूल शब्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-size: large;">आज कोई अंग विशेष से सम्बंधित न हो कर ऐसे शब्दों से शुरू कर रहा हूँ जो शरीर की मौलिक संरचना को समझने के लिए आवश्यक हैं:</span><br />
<div>
<ul>
<li style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">कोशिका (सेल- cell): जैसे दीवार ईंटो से बनी होती है शरीर कोशिकाओं से. कोशिका सबसे सूक्ष्म इकाई है जो जीवित होती है- जैसे अणु किसी भी पदार्थ का सूक्ष्मतम कण होता है जिसमे उसके सारे गुण विद्यमान हों. कोशिका इतनी छोटी है की हम उसे नंगी आँखों से नहीं देख सकते. मगर जब सूक्ष्मदर्शी (microscope) से देखें तो यह अपने आप में एक पूरा संसार है. हमारे शरीर में सैकड़ों तरह की अलग अलग कोशिकाए होती है जो अलग अलग काम करती है. उदाहरण के तौर पर :</span></li>
<ul>
<li style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">श्वेत रक्त कोशिका (white blood सेल)- रक्त के साथ बहती कोशिका जिसका काम संक्रमण के विरुद्ध लड़ना है - तो यह है सबसे छोटा सिपाही/लड़ाकू.</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">न्यूरोन (neuron ) : एक बेहद खास तरह की कोशिका जिससे हमारा मष्तिष्क, मेरुदंड (spinal chord) और नसें बनी हैं. यह शरीर के लिए एक तरह से processors और wire को बनाने की "ईंट" है.</span></li>
<li style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;">epithelial सेल (हिंदी शब्द मालूम नहीं): ये एक प्रकार की बेहद चिपटी कोशिकाए होती हैं जो आपस में मिल कर एक चादर सा बना लेती हैं जो अंगों को ढक लेता है- जैसे "प्लास्टर" दीवार को. हमारे त्वचा की सबसे बहरी परत इसी से बनी है.</span></li>
</ul>
</ul>
<span style="font-size: large; text-align: justify;">कई सूक्ष्म जीव होते हैं जिनका शरीर सिर्फ एक कोशिका का बना होता है.जैसे बैक्टेरिया , अमीबा, वायरस आदि.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large; text-align: justify;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large; text-align: justify;"><span style="color: red;">शुक्राणु (स्पर्म सेल) एक खास तरह की कोशिका होती है जो एक द्रव माध्यम में गतिशील होती है. मगर आप क्या जानते हैं की क्या खास बात है इस जीवन निर्माता कोशिका की? उत्तर फिर कभी .</span></span></div>
<div>
<span style="font-size: large; text-align: justify;"><span style="color: red;"><br /></span></span></div>
<div>
<span style="font-size: large; text-align: justify;">यह भी जानने की बात है की जब कैंसर होता है तो कहीं कोई एक कोशिका ही होती है जो विद्रोही हो जाती है और उसका विस्तार होने लगता है.अब अलह अलग तरह की कोशिका तो अलग अलग तरह के कैंसर!!</span></div>
<div>
<span style="font-size: large; text-align: justify;"><br /></span></div>
<div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-yTsa-s7qdXs/T1G3O9ZXRNI/AAAAAAAACr0/qy_OsMhqcZE/s1600/human+cell.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="276" src="http://1.bp.blogspot.com/-yTsa-s7qdXs/T1G3O9ZXRNI/AAAAAAAACr0/qy_OsMhqcZE/s320/human+cell.gif" width="320" /></a></div>
<ul>
<li><span style="font-size: large; text-align: justify;">ऊत्तक (tissue ): एक प्रकार की कोशिकाए एक खास संरचना स्टाइल में आपस में मिलकर, एक कालोनी जैसी बना लेती हैं और इसे ही उत्तक कहते हैं. तो अलग अलग उत्तक को जब सूक्ष्मदर्शी के अन्दर देखें तो उनका अलग अलग पैटर्न होता है. जब इस pattern में गड़बड़ी होती है तो वह कैंसर की पहली निशानी होती है. उत्तक के विज्ञान को histology / histopthology कहते हैं. </span></li>
</ul>
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-5D3yQAFxASY/T1G35dEteGI/AAAAAAAACr8/SpluKWa8hTk/s1600/human+tissue.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="256" src="http://4.bp.blogspot.com/-5D3yQAFxASY/T1G35dEteGI/AAAAAAAACr8/SpluKWa8hTk/s320/human+tissue.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">यह है चित्रकार द्वारा बनायीं तश्वीर, मगर microscope के अन्दर अलग ही दीखता है - ये रंग असली नहीं हैं, मूलतः कोशिकाएं रंगहीन होती हैं मगर histopathologist उसे देखने के पहले उस पर रंग डाल देते हैं देखने की सुविधा के लिए. </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-v-L51ZDOj_k/T1G5K0OBjiI/AAAAAAAACsE/Tcd5X3oPLS0/s1600/human_tissue_under_microscope.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://4.bp.blogspot.com/-v-L51ZDOj_k/T1G5K0OBjiI/AAAAAAAACsE/Tcd5X3oPLS0/s320/human_tissue_under_microscope.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">तो फिर आज के लिए इतना ही. फिर मिलेंगे. खुदा हाफिज़ ! राम राम!</span></div>
</div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-43862610265961702662012-03-02T14:26:00.001-08:002012-03-02T14:26:32.254-08:00हमारा शरीर : हमारी भाषा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">अभिवादन!</span><br />
<div>
<span style="font-size: large;">अपनी जुबान में आप सबों से "वर्धमान" के जरिये रूबरू तो होता रहा हूँ मगर हिंदी ब्लॉग जगत में शामिल होने का एक जो उद्देश्य था कि अपनी भाषा में शरीर और स्वस्थ्य के उपर कुछ लिखूं.थोड़ा प्रयास किया भी मगर अधूरा और असंतुष्ट ही रहा.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">अब इस नए ब्लॉग "हमारा शरीर : हमारी भाषा" के जरिये एक नई और गंभीर कोशिश है. आप सबों का सुझाव और उत्साह वर्धन सदैव संबल रहा है और इसकी अपेक्षा रहेगी.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div>
<span style="font-size: large;">तो फिर आप सबों का स्वागत करे हुए "स्वान्तः सुखाय" का भाव ले कर और "बहुजन हिताय" की कामना के साथ इसकी शुरुआत करता हूँ.</span></div>
<div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://3.bp.blogspot.com/-QhFQgmpvgoE/T1EhaGO9kfI/AAAAAAAACrs/u-lRyqbeG68/s1600/DSC02777.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://3.bp.blogspot.com/-QhFQgmpvgoE/T1EhaGO9kfI/AAAAAAAACrs/u-lRyqbeG68/s320/DSC02777.JPG" width="320" /></a></div>
<div>
<span style="font-size: large;">धीरे धीरे बहुत सी बातें होंगी मगर शुरू कि जो योजना है, वह है स्वस्थ्य सम्बन्धी एक शब्द कोष विकसित करने की. तो शुरुआत के कुछ पोस्ट में शरीर से सम्बंधित सामान्य शब्दों को समझाने कि कोशिश होगी. आशा है कि इससे हमें चिकित्सकों कि बातों को समझने में सुविधा होगी और अपनी बात समझाने में आसानी.</span></div>
<div>
<br class="Apple-interchange-newline" /></div>
</div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-76195570823113132822012-02-14T09:11:00.000-08:002012-02-14T09:11:38.924-08:00खुले ख्याल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://1.bp.blogspot.com/-3FhoVtqCqsQ/TzqUwt4PJFI/AAAAAAAACqA/zrl83vTbMiM/s1600/DSC02690.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://1.bp.blogspot.com/-3FhoVtqCqsQ/TzqUwt4PJFI/AAAAAAAACqA/zrl83vTbMiM/s320/DSC02690.JPG" width="320" /></a><span style="font-size: large;">कई खुले ख्याल दिमाग में आते और जाते हैं. जैसे- उग आये कई छोटे पौधे - इनकी देख भाल चिंतन की सिंचाई से मैं नहीं करता हूँ और कोई पकी फसल तैयार नहीं हो पाती है.ये अध् पके ख्याल मस्तिष्क के नभ पर शरद के मेघ की तरह मंडराते तो है मगर घनीभूत हो बरस नहीं पाते.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">इन अध् पके ख्यालों से भी एक मोह सा होता है. या फिर अकेला आलसी कंजूस मर्द - रात पकी दाल की हांड़ी को ही खुरच <span> </span> कर सुबह की रोटी खा जाना चाहता है.</span><br />
<span><span style="font-size: large;"><br /></span></span><br />
<span style="font-size: large;">जिंदगी एक jigsaw पहेली है - और हर छोटे छोटे निर्णय जो हम अनजाने अनायास लिए चले जाते हैं; इस बृहत् दृश्य को बनाने वाली बिन्दुओं की तरह हैं. चाय का प्याला और चीनी का डिब्बा सामने पड़ा है - अब यह तो मेरा ही मन है की मैं चीनी लूं या नहीं. इस छोटी सी choice<span> का क्या मतलब है?</span></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">प्रश्न बड़ा गंभीर है! ईश्वर है या नहीं? उसका स्वरुप क्या है? अलग अलग ग्रन्थों, पैगम्बरों ने समझाने बताने की कोशिश तो की है मगर समझ आता नहीं. ओशो ने कहा की बुद्ध ने २५०० वर्ष पूर्व कहा था की <span> </span> यह गंभीर प्रश्न मिथ्या है धोखा है - फ़िज़ूल है - वक्त जाया न करो...... फिर तो उन सब से बचो जो यह समझाने की मदद करना चाहते हैं. अब कल इम्तिहान हो तो आज जो दोस्त हिट फिल्म दिखाने आये उससे तो बचना ठीक ही है.</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span style="font-size: large;">अखबार में खबर छपी है की ८० वर्ष के बुजुर्ग २० वर्ष की आयु की तुलना में ज्यादा सुखी हैं. ५० के इर्द गिर्द तो सबसे बुरा हाल है. वयोवृद्ध बच्चों की तरह प्रसन्न हैं. - ऐसे, यह सर्वेक्षण पश्चिमी है तो थोडा ध्यान रखना होगा! खैर, जो खुश वृद्ध हैं - उनका कहना है " खतरा/रिस्क लिया तो वही अच्छा था और न लिया तो वही पश्चाताप है." पर जाने दें यह तो पश्चिमी बात <span> </span> है. </span><br />
<span><span style="font-size: large;"><br /></span></span><br />
<span style="font-size: large;">प्लास्टिक - जब ५०- ६० के दशक <span> </span> में आई थी - तो प्रचारित हुआ था <span> </span> क i<span> यह वो चीज़ है जो हाथियों की जान बचायगी- </span> चूँकि जंगल कम कटेंगे. अब लोग परेशां हैं. ५% प्लास्टिक ही recycle होती है. बन गयी तो कम से कम 500 वर्षों तक तो रहेगी ही. " a material suitable to produce disposable but irony is that it is most indestructible" </span><br />
<span><span style="font-size: large;"><br /></span></span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><br />
<span><span style="font-size: large;"><br /></span></span><br />
<span><br /></span><br />
<span><br /></span><br />
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<span><br /></span><br />
<span><br /></span><br />
<span><br /></span></div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-40851107510642908492012-02-06T15:28:00.000-08:002012-02-06T15:28:56.109-08:00रामचरितमानस: राम कथा के परे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">तुलसी दास कृत रामचरितमानस कई मायनों में एक मापदंड कृति है.साहित्य की दृष्टि से हिंदी की सिरमौर कृति है, धार्मिक ग्रन्थ के रूप में तकरीबन हर हिन्दीभाषी के घर में इसकी उपस्थिति है और सच्चे मायने में एक लोक ग्रन्थ है जिसका उद्धरण गाँव के अनपढ़ भी अनायास देते मिल जायेंगे.</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है की यह दशरथ पुत्र राम की कथा है और तुलसीदास ने इसे दास्य भाव से भक्ति की भावना से लिखा है.</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">श्री राम की कथा तुलसी के पूर्व भी लोकसमान्य में प्रचलित थी. तुलसीदास ने जब जन साधारण की भाषा में आज से ४०० वर्ष पूर्व इसकी रचना की थी तो उन्हें विद्वत जनों में इसके विरोध का खूब एहसास था. उन्होंने शुरू में ही निंदकों "खल" की वंदना की है. मगर विद्वत जन इसका क्यों विरोध कर रहे थे? ऐसा <span> </span> क्या था जो वो जन साधारण को बोली में उन तक नहीं पहुँचने देना चाहते थे? "वह"<span> </span> सिर्फ एक कहानी हो ऐसा शायद ही हो. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">रामचरित मानस के प्रारंभ के पन्नों को पढने से मुझे ऐसा लगा की शायद यह सर्वविदित राम कथा <span> </span> के परे भी कुछ कहना चाह रही है.</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">तुलसीदास इसके शुरुआत में ही कहते हैं की यह कथा गूढ़ ( कठिन<span> </span>, क्लिष्ट, गंभीर ) है, और गुरु के बताने पर ही वो इसे उम्र बीतने पर ही समझ पाए - इससे ऐसा संकेत मिलता है कि इसका कोई सांकेतिक अर्थ है जो सतही अर्थ से गंभीर है.</span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"> </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">कथा ऐसी है कि इसे सबसे पहले शिव ने पार्वती से कहा जिसे काक्भुशुन्दी ने सुना और फिर ऋषि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज से कहा और अब तुलसीदास इसे लोकजन के <span> </span> लिए कह रहे हैं. <span> </span> </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;">महर्षि भारद्वाज भी याज्ञवल्क्य से ऐसी ही प्रार्थना करते हैं कि जो "राम" हैं क्या वो वहीँ हैं जो जग विदित दशरथ पुत्र राम हैं? ऐसा लगता है कि याज्ञवल्क्य से इस कथा को सुनने के पूर्व ही उन्हें कहानी तो मालूम थी मगर इसमें कुछ था जो वो समझ नहीं पाए थे. </span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
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<span style="font-size: large;">शिव ध्यान निमग्न हैं, भावविह्वल हैं, - पार्वती शिव के इस भावावस्था को समझना चाहती हैं - और शिव उन्हें यही समझाने के लिए "राम कथा" सुनाते हैं. <span> फिर यह मुझे लगता है कि कोई गंभीर बात है जो सांकेतिक रूप में कही गई हो. </span></span></div>
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<span style="font-size: large;">कहीं रामचरितमानस आध्यात्मिक विकास यात्रा का सांकेतिक वर्णन तो नहीं? कहीं राम सीता और रावण सब हमारे अन्दर ही तो नहीं? हालाँकि ऐसा कहना भी कोई नई बात नहीं है - मगर रामचरितमानस पढ़ते ऐसा लगा कि शुरू में ही <span> </span> तुलसीदास ने इसके सटीक संकेत दिए हैं. </span></div>
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<span style="font-size: large;">मैं स्वास्थ्य की वजह से तत्काल काम पर नहीं जा पा रहा हूँ और इसी लिए इस ग्रन्थ को पढने का अवसर मिला है. मेरे पास जो प्रति है उसमे प्रचलित हिंदी में सरलार्थ नहीं है. इसलिए मैं बहुत कुछ नहीं भी समझ पाता हूँ. मगर अगर ठहर ठहर कर पढूं तो अर्थ कुछ खुलते <span> </span> से भी लगते हैं.</span></div>
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<span style="font-size: large;">तुलसीदास की ख्याति ज्योतिषी <span> </span> के रूप में भी खूब थी. क्या मानस में इसकी झलक मिलती है? अब तक तो मैंने नहीं पाया है. तुलसीदास अकबर के समकालीन थे मगर उनकी रचना में इसकी झलक भी नहीं मिलती है. शब्दं के चयन में भी तत्सम शब्द ही मिलते हैं- हाँ "गरीब नवाज" उन्होंने रामके लिए प्रयुक्त किया है.</span></div>
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<a href="http://chandrakantha.com/biodata/media/tulsidas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="http://chandrakantha.com/biodata/media/tulsidas.jpg" width="231" /></a></div>
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</div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-47864215198474356222012-01-16T15:21:00.000-08:002012-01-16T15:21:45.352-08:00शाश्त्रीय संगीत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुझे संगीत का ज्ञान नहीं है . कोरा हूँ, निरक्षर.<br />
बचपन में रेडियो पर सुनकर लगता था की "क्या ये भी संगीत है?" फिर जैसे जैसे बड़े हुए तो थोड़ी रूचि हने लगी. जो प्रसिद्द नाम थे उनके संगीत सुनने की इच्छा होने लगी. दूरदर्शन पर आये 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' ने इन कलाकारों के दर्शन कराये.<br />
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अभी हाल में ऐसे ही भटकते हुए youtube<span> पर कुमार गन्धर्व से रूबरू हुआ- और उनके संगीत ने खूब प्रभावित <span> </span> किया. उनके बारे जानने लगा तो और भी उत्सुकता हुई. बुरा भी लगा की इन सच्चे कलाकारों के विषय में हम कितना कम जानते हैं. इनका जीवन ऐसी कहानी लगी की इस पर एक फिल्म बनायीं जा सके. अद्भुत प्रतिभावान बालक- लोगों ने कुमार गंधर्व कहा. अपने गुरु की एक और शिष्या से विवाह किया, गुरुदेव नाराज हुए. TB हो गया -१९४० - ५० की बात है - तब यक्ष्मा एक जान लेवा बीमारी थी. पत्नी भानुमती की सेवा से और हाल में आई नई दवाइयों से जान बच गयी. इनका पुत्र मुकुल शिवपुत्र. ये भी श्रेष्ठ कलाकार गायक मगर जल्दी ही काल कलवित हो गए - व्यसनों और शराब के कारण. कुमार गंधर्व की पत्नी भानुमती भी जल्दी ही स्वर्ग सिधार गयीं. उन्होंने दूसरी शादी की - और इन दोनों ने साथ साथ में बहुत कुछ गाया प्रकाशित किया.</span><br />
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-qVm4bVRL6-k/TxSw4tcgb2I/AAAAAAAACp4/Ph3ogVzF4jc/s1600/DSC02854-1.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://4.bp.blogspot.com/-qVm4bVRL6-k/TxSw4tcgb2I/AAAAAAAACp4/Ph3ogVzF4jc/s320/DSC02854-1.JPG" width="320" /></a></div>
<span>हाल ही में बीबीसी पर पंडित भीमसेन से एक मुलाकात का प्रसारण हुआ था. उनसे जब उनके समकालीन श्रेष्ठ गायक के विषय में पूछा गया तो उन्होंने एक ही नाम लिया था और वो थे-कुमार गंधर्व.</span><br />
शुभा मुद्गल से तो काफी लोग अरिघित हैं- वो कुमार गंधर्व की शिष्या रही हैं.<br />
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संगीत के क्षेत्र में एक और नाम है श्री भातखंडे. इनका महान योगदान रहा है - इन्होने सबसे पहले हिन्दुस्तानी संगीत को लिपिबद्ध किया और तमाम राग आदि का संकलन कर इसे एक सैद्धांतिक विषय के रूप में विकसित किया जिसका ही परिना था की भारतीय संगीत विश्वविद्यालाओं <span> </span> में भी पढ़ी <span> </span> जाने लगी.<br />
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बस इतना ही लिखूंगा. इनके बारे में पढने जानने लगा तो यह एक सुन्दर यात्रा सी बन गयी. ये अब हमारे गौरव <span> </span> और धरोहर हैं.<br />
शुभा मुद्गल के ब्लॉग पर एक हाल में लिखी ब्लॉग - मुंबई में जो महाराष्ट्र के बहार से आ कर बसें है पर सार्थक और मजेदार बहस है. वक्त मिले ओ जरूर देखें. शुभामुद्गल.कॉम<br />
शुभ रात्रि.<br />
<br /></div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-24262335428501294892012-01-15T07:37:00.000-08:002012-01-15T08:58:07.077-08:00आज का दिन १५ जनवरी 2012<a href="http://3.bp.blogspot.com/-NpjpzVZfkHE/TxMBo936cjI/AAAAAAAACpw/yuHwBzjvt04/s1600/DSC02777.JPG"><img style="MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; FLOAT: right; HEIGHT: 240px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5697899756869284402" border="0" alt="" src="http://3.bp.blogspot.com/-NpjpzVZfkHE/TxMBo936cjI/AAAAAAAACpw/yuHwBzjvt04/s320/DSC02777.JPG" /></a><br /><br /><div>रात खूब ठण्ड थी। बाहर एक <span style="font-size:+0;">टब </span>में रखा पानी जम गया है अपनी सतह पर। रात करवटों में बीती, शायद कुछ ही घंटे सो <span style="font-size:+0;">पाया । </span>दर्द में करवटें बदलता रहा। सुबह जल्दी ही फिर जाग गया सबसे पहले। दैनिक क्रिया से निवृत्त हो नहा कर छोटी सी पूजा <span style="font-size:+0;">की - </span>आज मकर संक्रांति है। मंदिर जाना चाहता था पर विवशता <span style="font-size:+0;">है। </span></div><br /><br /><br /><br /><br /><div><span style="font-size:+0;">आज "माघे <span style="font-size:+0;">साते"</span> है मतलब की माघ मास में सातवे दिन इतवार है- कभी कभी ही होता है- और मम्मी ने बताया की आज के दिन नमक न खाओ तो पूरे साल इतवार <span style="font-size:+0;">को </span>नमक छोरने का फल मिलता है। </span></div><br /><br /><br /><br /><br /><div><span style="font-size:+0;">धीरे <span style="font-size:+0;">धीरे </span>बच्चे <span style="font-size:+0;">जगे । </span>सबकी छुट्टियाँ है। </span></div><br /><br /><br /><br /><br /><div><span style="font-size:+0;">मैं बिस्तर में ही पड़ा रहा, और कमरे में सुहानी धूप आती रही शाम तक। पत्रहीन शाखाओं के परे शुभ्र स्वच्छ आकाश में सूर्य देव चमकते रहे। अब कठिन सर्दी के दिन गिने चुने ही हैं। पत्रहीन वृक्ष के वसंत का इन्तेज़ार ख़त्म होने वाला है। दूर जाते सूर्य देव फिर से वापसी की यात्रा पर हैं- आज तो मकर राशि में भी प्रवेश कर चुके है।</span><br /><span style="font-size:+0;">उनका वापस आना अब निश्चित है. क्या मैं भी अपने दर्द से मुक्त हो उनके स्वागत मे खड़ा हो सकूँगा? बच्चों को ले सुमीता दोपहर मे पार्क चली गयीं. मैं अकेला थोड़ी देर टीवी देखता रहा . फिर लगा की लेटना ही होगा. उपर चला आया</span></div><br /><br /><br /><div><span style="font-size:+0;">अब सूर्यास्त हो चला है और अंधेरा होने ही वाला है. एक और चमकीला दिवस बीत गया- मैंने कुछ खास ना किया. इधर उधर कुछ बातें की- मगर खास बात ये जाना कि पंडी जी(गुरु जी) 80 ke vay me स्वस्थ है रोज टहलते हुए मुस्तफापुर से सूरजगढ़ा शाम मे टहलते जाते और आते हैं. आख़िर बार उनसे २-३ वर्ष पहले ही मिला था. अपने इर्द गिर्द जिनसे भी मिला उनका अपना सबसे थोड़ा था मगर वो सबसे संतुष्ट और प्रसन्न लगे- मेरी दौड़ और उसकी पहलियों को और उलझाते से। जान कर अच्छा लगा की वो स्वस्थ हैं और ग्लानि सी हुई की उनका शिष्य इस उम्र मे बिस्तर पकड़े है।</span><br /></div><br /><div>आप सब को शुभकामनायें। बस इतना ही किया कि किसी को कोई तीखा जला बुझा न कहा। गुस्सा न किया। विवश को क्रोध ज्यदा होता है। वचन से हिंसा सबसे आम हिंसक वृत्ति है। हम सब इससे बचें.<br /><br /><br /></div><br /><div><span style="font-size:+0;"></span></div><br /><br /><br /><br /><br /><div><span style="font-size:+0;"></span></div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-52859882684440719862011-12-28T08:46:00.000-08:002011-12-28T09:05:38.961-08:00सुखद खबर भारत कीतकरीबन ३-४ वर्ष पहले देश की आजादी की ६० वीं वर्षगाँठ पर याहू.कॉम ने एक वेब साईट के बारे में बताया था-<br /><br /><br /><a href="http://www.goodnewsindia.com/">.goodnewsindia.<span id="28" class=" transl_class" title="Click to correct">com</a></span><br /><br /><br /><br /><span style="font-size:+0;">मैं इस पेज पर अक्सर जाता रहा। सोचा आपमें से जो भी इसके <span style="font-size:+0;">बारे </span></span>में न जानते हों उन्हें इसके बारे में बता दूं। यह चेन्नई के एक सज्जन श्रीमान श्रीधरन जी के द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने एक अरसे तक भारत के विभिन्न भागों में घूम घूम कर उन लोगों के बारे में लिखा जो कुछ मौलिक और सुन्दर कार्य कर रहे थे।<br /><br /><br />करीब दो वर्ष पहले उन्होंने इसपर नया कुछ लिखना तो बंद कर दिया <span style="font-size:+0;">एक </span>यात्रा हुई-<br /><br /><br /><span style="font-size:+0;"></span>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1282776537499432519.post-42385454701777808912011-12-26T11:50:00.000-08:002011-12-26T12:11:50.089-08:00आरक्षण - चुप्पी क्यों?<a href="http://4.bp.blogspot.com/-BK2WgXdeMwk/TvjU2YiMS-I/AAAAAAAACpk/56OFfkTiX0E/s1600/IMG-20110810-00065.jpg"><img style="MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 320px; FLOAT: right; HEIGHT: 240px; CURSOR: hand" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5690532159946509282" border="0" alt="" src="http://4.bp.blogspot.com/-BK2WgXdeMwk/TvjU2YiMS-I/AAAAAAAACpk/56OFfkTiX0E/s320/IMG-20110810-00065.jpg" /></a><br /><br /><div>भारतीय व्यवस्था के सन्दर्भ में आरक्षण का महत्त्व अब ज्यादा सांकेतिक ही है, और वह इस लिए कि रोजगार कि ज्यादातर संभावनाएं अब निजी क्षेत्र में है, जहाँ इन नीतियों का प्रभाव नहीं है।</div><br /><br /><br /><div>शायद उएही वजह है कि सरकार <span style="font-size:+0;">क़ी </span>अल्पसंख्यक सम्बन्धी आरक्षण क़ी नई घोषणा के बाद ब्लॉग jagat में koi खास चहल पहल नहीं है । एक वजह यह भी है कि अधिकतर लोग ऐसे संवेदन शील मुद्दे से बचना चाहते <span style="font-size:+0;">हैं, </span>और ब्लॉग लिखने से तो कुछ होने वाला है नहीं।- शायद।</div><br /><br /><br /><div>धर्म के आधार पर आरक्षण क्या साम्प्रदायिकता को और बढ़ाएगी जैसा कि शायद इसने जातियों के सन्दर्भ में किया है। हमारे बीच का फर्क और बढेगा। जो विद्यार्थी साथ साथ पढाई कर रहे होंगे अब उनके अलग अलग समूह में <span style="font-size:+0;">बंटे </span>होने कि ek और जायज वजह होगी.</div><br /><br /><br /><div>इस मुद्दे पर बहस तो किसी नतीजे पर पहुँच नही सकती। मगर मैं कहना चाहता हूँ कि मैं इसका विरोध करता हूँ क्योंकि यह सैध्धान्तिक रूप से हमारे देश के लिए लबे दौर में अच्छा नहीं है.</div><br /><br /><br /><div></div><br /><br /><br /><div></div><br /><br /><br /><div></div><br /><br /><br /><div></div><br /><br /><br /><div></div><br /><br /><br /><div></div>Raravihttp://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.com0