शनिवार, 14 अगस्त 2010

आज़ादी की सालगिरह मुबारक हो।
आपका लेख मुझे अच्छा लगा। गाँधी जी को हमें याद रखना होगा। वो हमारी रोशनी हैं। शिवम् मिश्रा जी थोड़े नाराज़ लगे, कोई बात नहीं, बहुत सरे लोगों ने अलग अलग तरह से अपने स्टार पर बलिदान दिया है और वे सभी हमारे पूजनीय हैं, मगर देश और काल से परे जो सच्चाई है वह सत्य और अहिंसा ही है, यही भारत की आत्मा है।
आपने अंग्रेजी मानसिकता के तिरस्कार की बात की है, मगर यहाँ भी हमें कोई वैर या द्वेष का भाव नहीं रखना चाहए, - अंग्रेजी मानसिकता क्या है? शायद आप उपभोक्ता वाद के तिरस्कार की बात कर रहें/रहीं हैं। फिर मैं आपसे सहमत हूँ, मगर इसे अंग्रेजी मानसिकता कहना पूरी तरह से सही नहीं है।
और जो स्वदेशी है हम उसपर गर्व तो बगैर किसी का तिरस्कार किये भी तो कर सकते हैं।
जय हिंद

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

झूठी बातें और दिल का दर्द.

आधे सच लिख कर बोल कर अपनों का दिल दुखाने और अपनों को पराया हम क्यों बनाते हैं? सनसनीखेज बात लिखने के लिए लोगों का दिल दुखाना तो ठीक नहीं खास कर जब यह पूरा सच न हो।
अपने कौन हैं और पराये कौन?
जिनके साथ हम १००० साल से रहते रहे हैं, जो हमारी बोली बोलते हैं, जो हमारी भाषा में लिखते हैं, वो तो हमारे अपने हैं, उनके दिल का ख्याल तो हमें रखना ही चाहिए।
हम याद करते हैं हिरोशिमा में हुई मानवता के सबसे बड़ी गलती की मगर ऐसा करते करते ही वही बीज बोने की कोशिश करते हैं जिससे की हिरोहिमा नागासाकी के जैसे ज़हरीले फल बनते हैं
यूरोप में यहूदियों पर जो जुल्म १९४०-४५ में हुये उसके पीछे तोड़े मड़ोरे sach ya jooth likhne aur bolne ki ek lambi parampara rahi hogi.
hum kuch vaisa na kare.