बुधवार, 28 दिसंबर 2011

सुखद खबर भारत की

तकरीबन ३-४ वर्ष पहले देश की आजादी की ६० वीं वर्षगाँठ पर याहू.कॉम ने एक वेब साईट के बारे में बताया था-


.goodnewsindia.com



मैं इस पेज पर अक्सर जाता रहा। सोचा आपमें से जो भी इसके बारे में न जानते हों उन्हें इसके बारे में बता दूं। यह चेन्नई के एक सज्जन श्रीमान श्रीधरन जी के द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने एक अरसे तक भारत के विभिन्न भागों में घूम घूम कर उन लोगों के बारे में लिखा जो कुछ मौलिक और सुन्दर कार्य कर रहे थे।


करीब दो वर्ष पहले उन्होंने इसपर नया कुछ लिखना तो बंद कर दिया एक यात्रा हुई-


सोमवार, 26 दिसंबर 2011

आरक्षण - चुप्पी क्यों?



भारतीय व्यवस्था के सन्दर्भ में आरक्षण का महत्त्व अब ज्यादा सांकेतिक ही है, और वह इस लिए कि रोजगार कि ज्यादातर संभावनाएं अब निजी क्षेत्र में है, जहाँ इन नीतियों का प्रभाव नहीं है।



शायद उएही वजह है कि सरकार क़ी अल्पसंख्यक सम्बन्धी आरक्षण क़ी नई घोषणा के बाद ब्लॉग jagat में koi खास चहल पहल नहीं है । एक वजह यह भी है कि अधिकतर लोग ऐसे संवेदन शील मुद्दे से बचना चाहते हैं, और ब्लॉग लिखने से तो कुछ होने वाला है नहीं।- शायद।



धर्म के आधार पर आरक्षण क्या साम्प्रदायिकता को और बढ़ाएगी जैसा कि शायद इसने जातियों के सन्दर्भ में किया है। हमारे बीच का फर्क और बढेगा। जो विद्यार्थी साथ साथ पढाई कर रहे होंगे अब उनके अलग अलग समूह में बंटे होने कि ek और जायज वजह होगी.



इस मुद्दे पर बहस तो किसी नतीजे पर पहुँच नही सकती। मगर मैं कहना चाहता हूँ कि मैं इसका विरोध करता हूँ क्योंकि यह सैध्धान्तिक रूप से हमारे देश के लिए लबे दौर में अच्छा नहीं है.


















शनिवार, 24 दिसंबर 2011

बेकार लोग

जो है जैसा है उसे वैसा ही रहने दें। क्यों हल्ला उल्ला मचाना। क्यों परेशां होना। सब कुछ स्नैह स्नैहस्वतः घटित होगा।


जन्मे हैं, बढे हैं अब उतार है और फिर मर जायेंगे। क्या सुधारना है क्या सुधरना है। अगर कुछ अच्छा लगे तो कर लो न तो बस चलने दो। मत झगरो। कोई कुछ छीन लेना चाहता है तो उसे ले लेने दो। क्या हो जायेगा?


कोई नियम नहीं है।


ऐसे लोग बेकार और खराब होते हैं। ये दुनिया में कुछ जाही कर पाते हैं.

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

यहाँ की बात - लन्दन से



२० दिसम्बर



फुर्सत में हूँ तो दिल कुछ कहना चाहता है। हल्का फुल्का। फुर्सत यूं कि मैं बीमार हो गया हूँ और काम पर नहीं जा सकता। कमर और पैर में दर्द है - sciatica, कोई बुखार नहीं।



christams का माहौल है। परंपरा है सेक्रेटरी और trainee doctors को तोहफा देने की। खुद तो बाज़ार जाने की हालत में नहीं हूँ मगर अरुज, मेरा मित्र और मेरी कई परेशानियों का जवाब - कॉलेज के दिनों से हम साथ हैं- मैंने ये काम उसे ही सौंपा है। Christene के लिए chocolate का डब्बा और फूल रखने के लिए एक सजावटी गमला मगर Trainees के लिए मुश्किल था निर्णय सो W H Smith का उपहार voucher -आसान विकल्प बना। मेरे साथ ४ trainee doctors हैं - लौरा -white ब्रिटिश- मगर एक भारतीय से विवाहित- जिससे वो russia में मिली थी । उसे मालूम है की बिहार कहाँ है और हाल ही में उसका पति २ सप्ताह के लिए बिहार नेपाल के सरहद पर रक्सौल में एक missionary अस्पताल में काम करने गए थे। दिया दासगुप्ता- सिंगापूर और पुणे में समय बीतने के बाद अब यहाँ paediatrics ट्रेनिंग कर रही है। फिलिप young trainee- शायद उसके ग्रेट grandparents में कोई भारतीय मूल के थे । और आखिर में हस्सन - ये सोमालिया से विस्थापित (asylum seeker) हैं- काफी उम्रदराज - कहते हैं इनके गाँव में नरसंहार हुआ था और सिर्फ ८ लोग बचे थे - हसन उनमे से एक थे। सबको बड़े दिन की बधाइयाँ।



यहाँ दिन बहुत छोटा और ठंडा है ०-४ डिग्री centigrade- खैर अब तक बर्फ तो नहीं गिरी है ।



बाज़ार में खूब रौनक सजावट और चहल पहल है। मैं बिस्तर में पड़ा हूँ.






शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

हमारा शरीर: हमारी त्वचा





हमारे शरीर में अलग अलग तंत्र हैं जो एक दुसरे पर निर्भर हैं और कुछ हद तक स्वायत्त भी।





आज हम त्वचा के विषय में बात करते हैं.





शरीर त्वचा से ढका है। त्वचा शरीर का एक सबसे बड़ा अंग है। आधुनिक आयुर्विज्ञान में इसके दो परत बताये गए हैं - epidedmis (ऊपरी परत) और dermis ( नीचली परत) और इसी से त्वचा विशेषज्ञ को dermatologist(डरमेटोलोंजीस्ट) कहते हैं। एपीडरमिस की कोशिकायें सतत झडती और बनती रहती हैं। dermis जो कि त्वचा की नीचली परत है इसमें केशिका के मूल (hair follicle) और स्वेद ग्रंथियां ( sweat glands) होती हैं। स्वेद ग्रंथिया त्वचा के सतह पर खुलती है। इनका मौलिक कार्य शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का है। इसके अलावा sebacious (सेबसियस) ग्रंथि होती है जो कि एक तैलीय पदार्थ का सतह पर श्राव करती है जो त्वचा को स्वस्थ और मुलायम रखता है। त्वचा के अन्दर कई अलग प्रतिरोधी कोशिकाएं ( immmunity cells) भी होती हैं जो त्वचा को भेद कर अन्दर घुसे किसी भी जीवाणु या अन्य हानि कारक पदार्थ को नियंत्रित करती हैं।





त्वचा में एक प्रकार की कोशिका पाई जाती है जिसे मिलानोसाइट (melanocyte) कहते हैं। ये मेलानिन नाम की एक वर्णक (पिगमेंट) को बनाती हैं जिससे हमारे त्वचा को रंग मिलता है। अगर melanocyte ज्यादा है तो रंग काला और कम तो रंग गोरा। melanocyte अगर कहीं ज्यदा हो जय तो तिल या कला मस्सा बन जाता है।





सेबेसियस ग्रंथि अगर ज्यादा हो और उसका मुहं बाद हो जाय तो उसे मुहांसा (एक्ने) कहते हैं। इन ग्रंथि की संख्या और कार्य होरमोन से नियंत्रित होती है जो किशोरावस्था में बढ़ जाती है।





अगर त्वचा जल जाय और सिर्फ एपीडरमिस को नुक्सान हो तो scar नहीं बनते मगर dermis के जल जाने से scar बनते हैं और वहां फिर से बाल नहीं उग पाते।





त्वचा हमारे शरीर की रक्षा को सतत सजग अंग है- हमारा BSF -हम इसे जाने और इसकी देखभाल करें।




















बुधवार, 24 अगस्त 2011

उपवास




आज मैंने उपवास रखा है। मुश्किल तो नहीं पर कई बार कुछ खाने कि तीव्र इच्छा हुई। सुबह भतीजी रिया से बातें हुई और उसने बताया कैसे हर कहीं अन्ना कि बातें हो रही है और उसे भी गुस्सा था कि मनीष तिवारी ने अन्ना के बारे में बुरा बोला। मैं थोडा हैरान था कि उसे हिंदुस्तान में घटित समसामयिक बातों कि इतने जानकारी है। मैंने भी निर्णय किया कि इस आन्दोलन के समर्थन में मैं भी एक दिन का उपवास रखूंगा।




उपवास शब्द का शाब्दिक अर्थ है समीप में रहना या बैठना। शायद भूख से त्रस्त मैंने खुद को अन्ना जी के थोडा करीब पाया हो।




खैर एक बात कहूँगा कि आज सारा दिन काम पर इस बात के लिए बहुत सजग था कि मैंने कुछ ऐसा तो नहीं किया जो भ्रष्टाचार कहा जा सके जैसे सुबह कि बैठक में ८:३० कि जगह ८:३७ को पहुंचना। हस्पताल के कंप्यूटर पर इंडियन न्यूज़ पोर्टल देखना, वैसे मन सजग तो था पर मैंने ये बेईमानी की कि इंडियन न्यूज़ देखा था।




कल की सुबह कुछ खा सकूंगा इस ख्याल के साथ सो जाता हूँ। शुभ रात्रि !





शनिवार, 13 अगस्त 2011

हमारा शरीर

हम सब अपने शरीर को जानें। यह स्वस्थ रहने में हमारी मदद करता है। पढ़े लिखे लोग तो कम से कम अपने शरीर के विभिन्न अंगों और उसके कार्य को समझें। हिंदी में शरीर से सम्बंधित शब्दों का मानकी करण हो।




हमारा शरीर कोशिकाओं (cells) से बना है। कोशिका शरीर के ईमारत की ईंटें हैं। एक कोशिका जीवन की मूलभूत इकाई है। कोशिका जीवित है मगर यदि आप कोशिका को और तोड़ दें तो जो बचेगा वह जीवित नहीं है। प्रकृति में एककोशकीय जीवन बहुतायत में पाया जाता है जैसे की तमाम जीवाणु (bacteria)। हमारे शरीर की कोशिकाए एक दूसरे पर निर्भर करतीं है अतः वो स्वतंत्र रूप से जीवित नहीं रह सकती हैं।परन्तु अगर एक कृत्रिम उपयुक्त सूक्ष्म वातावरण तैयार किया जाय तो शरीर की कोई भी एक कोशिका स्वतंत्र रूप से जीवित रह सकती है और ऐसा भी संभव है की उसके विकास से पूरे शरीर की पुनर्रचना की जा सके -- इसे ही CLONING कहते है।









अब अपने शरीर की बात करें, मगर शुरू कहाँ से करें? हमारे जीवन की शुरुआत कहाँ से होती है?




पिता की एक कोशिका -शुक्राणु(spermcell) और माता की एक कोशिका अंडाणु (ovum cell) के मिलने -निषेचन से एक नयी कोशिका का निर्माण होता है -और यह नई कोशिका एक नयी जीवन की शुरुआत है। यह नई कोशिका मां के गर्भाशय - बच्चेदानी (uterus) में विभाजित और विकसित होता है। नौ महीने में यह विकसित हो कर एक नवजात शिशु के रूप में जन्म लेता है। दरअसल गर्भाधान / निषेचन के ६-सप्ताह में भ्रूण का ह्रदयh धड़कने लगता है और अब तो २३-२५सप्ताह (६ महीने) के preterm बच्चे को भी है जा सकता hai।
हम तो विकसित मानव शरीर की रचना और कार्यप्रणाली की बात करने वाले थे












रविवार, 24 जुलाई 2011

उहापोह



लम्बे समय से उहापोह कि स्थिति बनी हुई है और सवाल अब भी अनुत्तरित है।





अनिश्चय कि स्थिति से कई निर्णय टलते रहते हैं और मैं इंतेज़ार कर रहा हूँ एक सुन्दर सुबह की, जब अँधेरा छट जायेगा और मुझे मालूम होगा कि क्या करना है और मैं बगैर किसी संशय के अपनी राह चल पडूंगा।





संयम का खेल है। या तो मैं सही वक्त का इन्तेजार करता रहूँ और फिर प्रहार करूं या फिर इस अनिश्चयता से घबरा कर; बस, कुछ तो करूं।










बात सीधी सी है, प्रवास की अवधि ८ साल से उपर हो गयी है मगर अब तक जान नहीं पाया हूँ कि कहाँ बसना है। एक लम्बी यात्रा अपने अंत का अंदेशा तो देती है मगर अंत दीखता नहीं है।





एक बेचैनी और झुंझलाहट सी होती है कि मैं इसका ज़वाब क्यूं नही जानता हूँ । हम बड़े बड़े सवालों का हल ढूँढने का दंभ भरते हैं मगर अपने इस निजी सवाल का जवाब मैं क्यों नहो ढूंढ पता हूँ।





सोचता हूँ तो पाता हूँ कि सदा ही निर्णय लेने में दुविधा के उहापोह से जूझता रहा हूँ। खुशनसीब हैं वो लोग जिन्हें हालात सफ़ेद और काले दो रंगों में दीखती है, मैं हमेशा सभीकुछ एक अन्थ्हीन सिलसिला के रूप में पाताहूँ जिसका कोई एक साफ़ रंग नहीं। कुछ भी सही नहीं कुछ भी गलत नहीं सभी कुछ परिस्थिति जन्य है।





मेरा निर्णय सूर्योदय कि तरह होगा, कोई हंगामा नहीं, कोई शोर नहीं, स्नैह स्नैह स्वतः परन्तु सच्चा, सुन्दर और शिव।










सोमवार, 7 मार्च 2011

क्या आप भूल गए कि आज--

आज ७ मार्च २०११ है। क्या यह कोई खास दिन है?
आज श्री हीरानंद सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' का जन्मदिन है। आज से ठीक सौ साल पहले हिंदी जगत के इस महापुरुष का अविर्भाव हुआ था। आज कि रात जब मैं हमारीवाणी पर आया तो निराशा सी हुई कि तमाम शोरगुल के बीच लोग भूल गए हैं इस खास दिन को. बड़ी बातें हैं महिला दिवस के सम्बन्ध में। मगर शायद अब हम अपने नायकों को प्रतिष्टित या स्मरण करना दकियानूसी मानने लगे हैं।
अज्ञेय का निधन ४ अप्रैल १९८७ में हुआ। मुझे बहुत अफ़सोस था कि मैं उनसे मिल नहीं पाया था। तब मैं स्कूल में ९ वीं कक्षा में था। उनमे मैंने एक नायक पाया था। अज्ञेय पढना तब युवा और विद्रोही होने कि पहचान थी।
"शेखर एक जीवनी" भाग एक हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक है। उनकी सम्पूर्ण कहानिया मैंने गर्मी कि छुट्टियों में ख़त्म कि थी।
नदी के द्वीप और आपने अपने अजनअबी उनके आना उपन्यास हैं।
उनकी कविताये हिंदी कि कालजयी धरोहर है।
क्या आपने "कतकी पूनो" नहीं पढ़ा है?
अभी वसंत पंचअमी गुजर गयी बगैर निराला को याद किये।
अज्ञेय अपनी कहानी "शरणार्थी" में लिकते हैं "दुनिया में अँधेरा बादलों के छाने से नहीं बल्कि सूरज के निस्तेज होने स होता है। दुनिया में बुराई बुरों कि ताकत से नहीं बल्कि अच्छों कि कमजोरी से है।"

शनिवार, 5 मार्च 2011

मिथक की सीमाओं के परे


हमारी पहचान के कई स्तर हैं। हमारी बोली, हमारी भाषा, हमारा धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वास हमारी पहचान बनाते हैं। मेरा "मैंपन" इन सब से बना है। मगर ये सब ही मुझे कईयों से अलग भी करते हैं। मेरे मिथकीय विश्वास - मेरे राम जी, हनुमान जी, शंकर जी गणेश जी मरी पहचान हैं मगर कई बार मेरी येही पहचान मेरे कई "अपनों" को मुझे पराया मानने को विवश करती है।

आज सोते से नींद खुली तो पौ फटने वाली थी। अचानक कुछ सुन्दर मेरे अन्दर जगा। बाहर देखती नज़रें धीरे धीरे अन्दर देखने लगीं। एक सुन्दर शांत अनुभूति। और फिर अचानक लगने लगा कि कई मिथकीय अलग अलग वर्ण मिल कर एक सुन्दर उज्जवल सफ़ेद रौशनी बन रहे हैं। राम और खुदा कृष्ण और christ का फर्क ख़त्म हो रहा था।

हर देश और हर काल में ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने इस अंतर्धारा को जाना है और हमें इसके बारे में बताने कि कोशिश कि है। हम में से तकरीबन हर किसी को कभी न कभी जीवन के सुख या दर्द भरे चरम क्षण में इसकी झलक मिली है। फिर हम एक हो जाते हैं। भाई और बहन। सगे सहोदर।

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

अमर चित्र कथा के प्रणेता नहीं रहे


अनंत पई, का ८१ वर्ष कि उम्र में देहावसान हो गया।

हमारी पीढ़ी के कई लोग अमर चित्र कथा को पढ़ते हुए बड़े हुए होंगे। यह चित्र कथा अनंत पई कि कृति थी।

बचपन में अमर चित्र कथा हमारे मन पर एक जादू सा था। सोचता था कि बड़ा हो कर किसी किताब के दूकान पाद काम करूं और दिन भर इन कोमिक्स को पढता रहूँ। ऐसा हो नहीं पाया। मेरा जीवन जिन कुछ चीजों से बेहद गहरे तौर पर प्रभावित हुआ है उसमे अमर चित्र कथा निश्चय ही एक है। अगर अनंत पई जी कि अमर चित्र कथा न होती तो शायद दुनिया और भारत को मेरे देखने का नजरिया काफी अलग होता।

आज मन अनंत जी को एक शिष्य वत श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

लम्बी उम्र का प्रयोजन


मानव १०० साल कि जिंदगी क्यों पाता है? ऐसा माना जाता है कि अगर सब कुछ ठीक ठाक चले तो आदमी सौ साल तक जी सकता है। कुछ ऐसे जानवर भी हैं जिनकी लम्बी आयु होती है जैसे कि तोता, कछुआ, और हाथी.


छोटे बच्चे ज्यदा देर तक ध्यान केन्द्रित नहीं रख सकते, मन चंचल होता है.। युवा मन शक्तिशाली और सक्षम तो है पर काम की तीव्र कमाना इसे उलझाये रखती है। अधेड़ उम्र में मन शांत तो होता है मगर जिम्मेदारियों के बोझ में दबा और आदतों se मजबूर.। फिर बुढ़ापे में शक्ति क्षीण हो जाती है और नैराश्य मन में घर करने लगता है। जिंदगी ऐसे ही गुजर जाती है।


मुझे मालूम नहीं कि लम्बी उम्र के जानवरों का जीवन क्या और कैसा है। या वो सिर्फ प्रकृति का एक प्रयोग मात्र है।

ऐसे में कभी कभी फुर्सत में मन सोचता है कि क्या जीवन का कोई तात्पर्य है या फिर बस यह एक प्राकृतिक संयोग है, जैसे कि बहती हवा में उड़ गया कोई पत्ता या सागर कि लहरों से इधर से उधर होता बालुका कण - इसका कोई प्रायोजन नहीं कोई तात्पर्य नहीं। और फिर ऐसे में जीवन के जीने का एक ही सही तरीका देखता है और वह है -मौलिक संवेदनाये -basic instincts। काम, क्रोध, भूख, भय आदि।


मगर यह सच नहीं है। क्यों नहीं है? तर्क से बता नहीं सकता मगर बस सही नहीं लगता है। तो फिर क्या मतलब है क्या प्रयोजन है? यह सवाल अनुत्तरित है और हर किसी को अपने सवालों का हल ढूंढना है और और शायद मानवों कि लम्बी उम्र इसी के लिए है। मगर अब जिंदगी ऐसी है कि ऐसी फालतू सवाल के लिए वक्त ही नहीं, और तो और जिंदगी aisi उलझ जाती hai कि यह सोचने ka भी वक्त नहीं मिलाता कि koi सवाल bhi है? अनुत्तरित प्रश्न मन ko व्यथित करते हैं।

तो फिर आयें। एक विराम लगायें। ठहरें। मूंदे नयन। देखें अंतर्मन। रूबरू हों दबे छुपे सवालूँ से और दूंदे उसका ज़वाब.

क्या येहि ध्यान है