धरती के बढ़ते तापमान का असर व्यापक होगा। रेगिस्तान फैलेगा, मौसम उलटे पुल्टे होंगे , समय पर बारिश नहीं होगी और बाढ या सूखे की स्थिति बनी होगी। बड़े स्तर पर मानवों का पलायन होगा। इससे युद्ध और कल्हकी स्थिति उत्पन्न होगी।
हालात है कि मरीज़ को मालूम है कि स्थिति बिगड़ रही है मगर परहेज़ फिर भी नहीं कर रहा। हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर छुपाए हैं . बस सोचते हैं कि हमारे जीवन काल में तो ऐसा नहीं होगा. मगर हमारे बच्चों का क्या होगा.?
मुझे तो लगता है कि हमारे जीवन काल में ही व्यापक असर दीखने को मिलेन्गे .
इस रस्ते में सबसे बड़ी रुकावट देश की परिकल्पना है. हम एक धरती औए उसके लोग की तरह न सोच कर अपने अपने देश की सोचते है
अगर धरती को बचाना ही तो देशों को मरना होगा. जब सवाल ऐसे गंभीर हों तो देशो का मुद्दा हास्यास्पद लगने लगता है कि लद्दाख में तम्बू किसने लगाये हैं .
अगली पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैं, सोचना होगा।
जवाब देंहटाएंDhanyavad praveen jee. I am really worried for our own generation.
जवाब देंहटाएंIts sad because we are responsible fot it. We have to take corrective action as soon as possible. We need to add ou own contribution to reduce carbon footprint though it may be very small.
जवाब देंहटाएंYou are right Ashish jee. I felt the guilt when I use fuel energy for luxury purpose. But at the same time the magnitude of this problem is so huge that I doubt how effective individual's effort will be.
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