आधुनिकता को परिभाषित कर पाना सरल नहीं है। आम तौर पर पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण आधुनिकता का पर्याय माना जाता है। अगर मैं अपने मन में गहरे उतर कर इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश् करूँ तो एक बात जो उभर कर सामने आती है वो है कि मनुष्य जो पूर्वाग्रहों से मुक्त है वही आधुनिक है।
देश, धर्म, जाति, लिंग आदि से जुड़े जो पूर्वाग्रह हैं उनसे मुक्त होना आधुनिक होने की पहली आवश्यकता होगी . मेरे विचार में आधुनिक मानव को एक बेहतर और सफल मानव भी होना ज़रूरी है। तो इस से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पूर्वाग्रहों से मुक्ति हमें बेहतर और सफल बनाती है।
कहीं न कहीं यह भी अवधारणा बन गई है कि आधुनिक मनुष्य उपभोक्तावादी होता है. जो उपभोग के नए नए वस्तुओं को अपने जीवन में आत्मसात कर रहा हो वही आधुनिक है. मैं इससे सहमत नहीं हो सकता कि उपभोगवादी होना आधुनिक होने की पहचान है । मगर यह भी मनाता हूँ की ऐसी अवधारणा बन जाने के पीछे वजह यह रही होगी कि उपभोगी होना परोक्ष रूप से मनुष्य के आर्थिक रूप से सफल होने का प्रमाण है और हम मानते हैं की आधुनिक मनुष्य सफल मनुष्य है- आर्थिक तौर पर भी।
अब लग रहा है कि बात आगे निकल कर महज आधुनिक होने की जगह सफल मनुष्य होने की होती जा रही है। तो अगर ऐसा सोचें कि "आधुनिक सफल मानव कौन है?" इसकी क्या पहचान है? पूर्वाग्रहों से मुक्त होना निश्चय ही एक आयाम हो सकता है. इसके अलावा जो जिन्दगी सही तरीके से जीना जानता हो और नए उद्भाषित तथ्यों को स्वीकार कर लेने में सक्रीय और सक्षम हो।
महर्षि अरविन्द ने अतिमानव की कल्पना की थी। अतिमानव - ही आधुनिक मानव होगा. तो फिर यहाँ बात मन और आध्यात्म की उठेगी . मगर आधुनिक मानव किसी भी बात जो सत्य प्रमाणित नहीं है उसमे यकीन नहीं कर सकता . ध्यान और मानसिक अवस्थाएं, मानसिक बल और कमजोरियां कोई काल्पनिक बातें नहीं बल्कि यथार्थ है। आधुनिक मानव वही है जो मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिमान है.
आधुनिक मानव जाति सतत वर्धमान है. वह साहसी है और विजयी है. वह जो बृहत् सत्य को समझता है जिसकी दृष्टि दूर अक देख सकती है और वह सिर्फ स्वयं ही नहीं बल्कि समष्टि के कल्याण के लिए कर्मरत है और सफल भी .
देश, धर्म, जाति, लिंग आदि से जुड़े जो पूर्वाग्रह हैं उनसे मुक्त होना आधुनिक होने की पहली आवश्यकता होगी . मेरे विचार में आधुनिक मानव को एक बेहतर और सफल मानव भी होना ज़रूरी है। तो इस से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पूर्वाग्रहों से मुक्ति हमें बेहतर और सफल बनाती है।
कहीं न कहीं यह भी अवधारणा बन गई है कि आधुनिक मनुष्य उपभोक्तावादी होता है. जो उपभोग के नए नए वस्तुओं को अपने जीवन में आत्मसात कर रहा हो वही आधुनिक है. मैं इससे सहमत नहीं हो सकता कि उपभोगवादी होना आधुनिक होने की पहचान है । मगर यह भी मनाता हूँ की ऐसी अवधारणा बन जाने के पीछे वजह यह रही होगी कि उपभोगी होना परोक्ष रूप से मनुष्य के आर्थिक रूप से सफल होने का प्रमाण है और हम मानते हैं की आधुनिक मनुष्य सफल मनुष्य है- आर्थिक तौर पर भी।
अब लग रहा है कि बात आगे निकल कर महज आधुनिक होने की जगह सफल मनुष्य होने की होती जा रही है। तो अगर ऐसा सोचें कि "आधुनिक सफल मानव कौन है?" इसकी क्या पहचान है? पूर्वाग्रहों से मुक्त होना निश्चय ही एक आयाम हो सकता है. इसके अलावा जो जिन्दगी सही तरीके से जीना जानता हो और नए उद्भाषित तथ्यों को स्वीकार कर लेने में सक्रीय और सक्षम हो।
महर्षि अरविन्द ने अतिमानव की कल्पना की थी। अतिमानव - ही आधुनिक मानव होगा. तो फिर यहाँ बात मन और आध्यात्म की उठेगी . मगर आधुनिक मानव किसी भी बात जो सत्य प्रमाणित नहीं है उसमे यकीन नहीं कर सकता . ध्यान और मानसिक अवस्थाएं, मानसिक बल और कमजोरियां कोई काल्पनिक बातें नहीं बल्कि यथार्थ है। आधुनिक मानव वही है जो मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिमान है.
आधुनिक मानव जाति सतत वर्धमान है. वह साहसी है और विजयी है. वह जो बृहत् सत्य को समझता है जिसकी दृष्टि दूर अक देख सकती है और वह सिर्फ स्वयं ही नहीं बल्कि समष्टि के कल्याण के लिए कर्मरत है और सफल भी .