आज हिन्दी दिवस है। मुझे थोड़ा ऐसा ही लगता है जैसे १५ अगस्त को लगता है। बचपन में जो उत्साह हुआ करता था वह तो अब नही होता पर एक हल्का सा नशा तो होता है। अंतरजाल पर इधर उधर खंगालता हूँ हिन्दी में क्या उत्कृष्ट हो रहा है। थोडी खुशी और थोडी निराशा होती है।
पर मन में सवाल उठता है की हिन्दी के प्रति यह आग्रह क्यों है? मन में कुछ सार्थक तर्क तो उभरते हैं मगर फिर यही लगता है नही अब तो कुछ नही हो सकता। हिन्दी को प्रतिष्टित कर पाना अब शायद ही सम्भव हो। मैं देखता हूँ की जब हिन्दी की बात उठती है तो हिन्दी भाषी इस चक्कर में पड़ जाते हैं की कैसे इसे हिन्दी नही बोलने वालों में कैसे स्थाफित किया जाय। मगर समस्या है की जो लोग पारंपरिक रूप से हिन्दी बोलने वाले हैं उनमे कैसे इसे बढाया और परिष्कृत किया जाय।
पहली बात की हिन्दी को शायद राजनीति से मुक्त कराएँ। और जो लोग हिन्दी नही बोलते हैं उनमे जो इसके प्रति भय युक्त विद्वेष है वह ख़त्म हो। हिन्दी नही बोलने वालों में हिन्दी थोपने का आग्रह ख़त्म होना चाहिए।
इस दिन क्या ऐसा संकल्प हो सकता है की एक मेडिकल कॉलेज खुले और उसमे पढ़ाई का मध्यम हिन्दी हो। मेडिकल मैं इस लिए बोल रहा हूँ की इसका सीधा ताल्लुक उनसे है जो हिन्दी बोलते हैं। एक डॉक्टर अगर देश में रहता है तो उसके पूरे जीवन में अगणित ऐसे अवसर आते हैं जहाँ सिर्फ़ हिन्दी ही वह माध्यम होता है जो उसे उसके मरीज से जोड़ता है।
आप एक बात बताये की आप किसी दूकान पर जायें और वहां के कुछ कर्मचारी आपके सामने आपके बारे में एक ऐसी जुबान में कुछ गिट पिट करें जो आप समझ न सकते हों तो क्या आप उसे बर्दाश्त करेंगे। और यह निश्चय ही अशिष्टता होगी। आप किसी भी हॉस्पिटल में डॉक्टरों के रोज होने वाले राउंड को देखें। मरीज और उसके सम्बन्धी विस्मय और आशा भरी निगाह से डॉक्टरों के हुजूम की तरफ देखते रहते हैं और वो अपनी गिट पिट के बाद दो शब्दों में उन्हें कुछ समझाने की कोशिश करते हैं, और मरीज जनता है की उसे पूरा सच नही बताया जा रहा है जो इंग्लिश में उनमे आपस में बातें की है। अगर हिन्दी को बचाना है तो मरीजों को यह अपमान सहना बंद अकारण होगा और डॉक्टरों को यह अशिष्टता कतम करनी होगी। अगर आप परदेश में हों और ऐसा होता है तो सहनीय है मगर अपने ही देश में अपने ही डॉक्टर ऐसा करें यह सही नही है।
मैं ख़ुद पेशे से डॉक्टर हूँ। और मैं जानता हूँ की ऐसा इस लिए होता है क्योंकि हमने मरीज और उसके मर्ज़ का विवरण हिन्दी या किसी भी भारतीय भाषा में कैसे हो इसे सखा ही नही है। हम चाह कर भी शायद ऐसा न कर पाएंगे या इसे बेहद मुश्किल पाएंगे। मैं कहतअ हूँ की हिन्दी न तो कम से कम हिंगलिश ही शुरू करो।
आज इस हिन्दी दिवस पर येही प्रार्थना और सपना है की एक दिन हमें तकनिकी शिक्षा खास कर मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में मिलेगी और वो दिन होगा जब मैं आश्वस्त होऊंगा की नही हिन्दी और हमारी संस्कृति अक्षुण है ।
क्या yeh होगा ? शायद।
मैं अपनी संतान को हिन्दी सिखा रहा हूँ ।
सोमवार, 14 सितंबर 2009
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