गुरुवार, 27 मई 2010

जब जो करूँ उससे अलग कुछ न सोचूँ।

जीने के कई तरीके हैं। अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से जीते हैं।

उपर उपर सरल गति से चलती जिन्दगी में भी सतह के अंदर तनाव और चिंता की लहरें मन को परेशां करती रहती हैं।

हमें बहुत कुछ करना होता है। बहुत सारी चिंताएं होती हैं। एक काम करते हुए दुसरे काम के बारे में सोचना पड़ता है। जीवन में तनाव का रंग अनजाने घुलने लगता है।

सोचा और पाया एक उपाय।

सूत्र : जब जो करूँ उससे अलग कुछ न सोचूँ।

अगर चल कर काम पर जा रहा हूँ तो यह न सोचूँ की पहुँच कर क्या करना है बल्कि अपनी चाल के प्रति सजग रहूँ। अगर ब्रुश कर रहा हूँ तो भी सारी सजगता इसके प्रति ही हो। अगर वंदना कर रहा हूँ तो फिर उससे इतर कुछ न सोचूँ।

यह MULTITASKING के विरुध्ध है। क्या इससे हमारी कुशलता और क्षमता कम हो जायगी। शायद नहीं। निश्चय ही चिंताएं ख़त्म होगीं और अनजाना तनाव भी कम होगा।

आज बुद्ध पूर्णिमा है। बधाई हो! शुभकामनायें.