सोमवार, 7 जनवरी 2013

मो-बोला-जी : जो जन्म से ही संपन्न हो

  ईसाईयों का एक सम्प्रदाय है "येहोवा विटनेस". भारत में रहते हुए मैं इससे परिचित न था। मैंने गोवा में करीब 9 वर्ष बिताये थे और  वहां की संस्कृति व् ईसाइयत को करीब से जाना था मगर  इसका पता न था।

मोबोलाजी जिन्हें लोग आसानी  के लिए "बीजे" बुलाते हैं, इस सम्प्रदाय को मानने वाले हैं और इत्तिफाक से  गुजरे गर्मी के मौसम में उनसे मुलाकात हुई। तब से ही हम लगातार मिलते रहे हैं।और मैं बाइबिल के बारे में बहुत कुछ सीख व् जान रहा हूँ।

मोबोलाजी का जन्म नाइजीरिया में हुआ था और पिछले 7 वर्षों से ब्रिटेन में रह रहे हैं। वो 6 फीट के लम्बे और बेहद शालीन इंसान  हैं।

 हम बात कर रहे थे soul एवं spirit की। इनका धर्म, आत्मा के अस्तित्व में वैसा विश्वास नहीं रखता जैसा की अधिकतर भारतीयों का है।  फिर  ये तो मानते हैं कि शरीर से पृथक Spirit है , और इसके बिना शरीर जीवन हीन है। मगर यह स्पिरिट वैसे ही है जैसे कि रेडियो में बिजली। बिजली के बिना रेडियो मृत है मगर जो बिजली इस चलाती है , उसका रेडियो से कोई निजी रिश्ता नहीं है।

खैर अंत में बात चल पड़ी कि बीजे आपका असल नाम क्या है? और मैंने जाना कि उनका नाम मोबोलाजी है जो की नाइजीरिया की एक भाषा येरोबा का शब्द है। और इसका  है जिसका जन्म  सम्पन्नता के साथ हुआ हो।

इनकी  धर्मपत्नी भी वैसे तो नाइजीरिया  की हैं मगर उनकी मातृभाषा अलग  है उरुबो । वो  आपस में अंगरेजी में ही बात  हैं। बच्चों के नाम नाइजीरियाई भाषा के न हो कर सामान्य अन्ग्रेजी  नाम हैं। और उन्हें येरोबा भाषा का ज्ञान न के  बराबर है।  नाइजीरिया भाषा की दृष्टि से भारत की की तरह विभिन्नता से भरा है। यह देश अफ्रीका के पश्चिम तट पर तेल संपदा से संपन्न देश है।
 
हमारे बच्चों का हिंदी ज्ञान भी बेहद काम चलाऊ ही  जा सकता है।

लुप्त होती प्रजातियों की तरह कई संस्कृतियाँ भी तेजी से लुप्त होती जा रहीं हैं। भाषा संस्कृति की spirit  है। किसी भी संस्कृति से अगर उसकी भाषा छीन ली जाय तो वह संस्कृति वैसे ही धूल में मिल जायगी जैसे की प्राण के बिना शरीर।

हमारी बात इस बात के साथ ख़त्म हो गई। भारतीय भाषा के बिना भारतीय संस्कृति निष्प्राण हो  जायगी।






 

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

नई रोशनी


एक लम्बे समय से मैं ने ब्लॉग पर कुछ लिखा नहीं है। पिछले एक साल में काफी कुछ बदला भी है।
मेरे लिए यही  बड़ी बात  होगी  कि  मैं इस लम्बे रुके हुए क्रम को तोड़ सकूँ।और यह ब्लॉग बस इसी का प्रयास है।

ख़बरों में दिल्ली में हुई दुखद दर्दनाक घटना की गूँज हर कहीं है। अलग अलग लोग अलग अलग विचार रखते रहे हैं।Guardian इंग्लैंड का एक प्रतिष्ठित  अखबार है और इसमें यहाँ के लोगों ने भी इस समाचार के उपर विस्तार से लिखा है। भारत और इसके समाज व् संस्कृति की खूब शिकायत लिखी गई है। यह खबर ही ऐसी है कि शिकायत तो होनी ही चाहिए। कई बार जब कोई दूसरा आइना दिखाए तो हकीकत और सफाई से दिखाई देता है। और मन को चोट भी गहरी लगती है।

मैंने अपनी पहचान खोता जा रहा हूँ , और मैं कहीं किसी से जुड़ा नहीं समझा जा सकता भले ही मेरे मन की हालत कुछ और हो। सच यह है की यहाँ के अखबारों में जो लिखा था उससे बहुत बुरा लगा और अपने मन की बात कहीं तो कह सकूं इस लिए आपके पास लौट आया।

खैर नया साल नई रौशनी लाये हम सबों के लिए।