सोमवार, 16 जनवरी 2012

शाश्त्रीय संगीत

मुझे संगीत का ज्ञान नहीं है . कोरा हूँ, निरक्षर.
बचपन में रेडियो पर सुनकर लगता था की "क्या ये भी संगीत है?" फिर जैसे जैसे बड़े हुए तो थोड़ी रूचि हने लगी. जो प्रसिद्द नाम थे उनके संगीत सुनने की इच्छा होने लगी. दूरदर्शन पर आये 'मिले सुर मेरा  तुम्हारा' ने इन कलाकारों के दर्शन कराये.

अभी हाल में ऐसे ही भटकते हुए youtube पर कुमार गन्धर्व से रूबरू हुआ- और उनके संगीत ने खूब प्रभावित    किया. उनके बारे जानने लगा तो और भी उत्सुकता हुई. बुरा भी लगा की इन सच्चे कलाकारों के विषय में हम कितना कम जानते हैं. इनका जीवन ऐसी कहानी लगी की इस पर एक फिल्म बनायीं जा सके. अद्भुत प्रतिभावान बालक- लोगों ने कुमार गंधर्व कहा. अपने गुरु की एक और शिष्या से विवाह किया, गुरुदेव नाराज हुए. TB हो गया -१९४० - ५०  की बात है - तब  यक्ष्मा एक जान लेवा बीमारी थी. पत्नी भानुमती की सेवा से और हाल में आई नई दवाइयों से जान बच गयी. इनका पुत्र  मुकुल शिवपुत्र. ये भी श्रेष्ठ कलाकार गायक मगर जल्दी ही काल कलवित हो गए - व्यसनों और शराब के कारण.   कुमार गंधर्व की पत्नी भानुमती भी जल्दी ही स्वर्ग सिधार गयीं. उन्होंने दूसरी शादी की - और इन दोनों ने साथ साथ में बहुत कुछ गाया प्रकाशित किया.


हाल ही में बीबीसी पर पंडित भीमसेन से एक मुलाकात का प्रसारण हुआ था. उनसे जब उनके समकालीन श्रेष्ठ गायक के विषय में पूछा गया तो उन्होंने एक ही नाम लिया था  और वो थे-कुमार गंधर्व.
शुभा मुद्गल  से तो काफी लोग अरिघित हैं- वो कुमार गंधर्व की शिष्या रही हैं.

 संगीत के क्षेत्र में एक और नाम है श्री भातखंडे. इनका महान योगदान रहा है - इन्होने सबसे पहले हिन्दुस्तानी संगीत को लिपिबद्ध किया और तमाम राग आदि का संकलन कर इसे एक सैद्धांतिक विषय के रूप में विकसित किया जिसका ही परिना था की भारतीय संगीत विश्वविद्यालाओं   में भी पढ़ी   जाने लगी.

बस इतना ही लिखूंगा. इनके बारे में पढने जानने लगा तो यह एक सुन्दर यात्रा सी बन गयी. ये अब हमारे गौरव   और धरोहर  हैं.
शुभा मुद्गल के ब्लॉग पर एक हाल में लिखी ब्लॉग - मुंबई में जो महाराष्ट्र के बहार से आ कर बसें है पर सार्थक और मजेदार बहस है. वक्त मिले ओ जरूर देखें. शुभामुद्गल.कॉम
शुभ रात्रि.

रविवार, 15 जनवरी 2012

आज का दिन १५ जनवरी 2012



रात खूब ठण्ड थी। बाहर एक टब में रखा पानी जम गया है अपनी सतह पर। रात करवटों में बीती, शायद कुछ ही घंटे सो पाया । दर्द में करवटें बदलता रहा। सुबह जल्दी ही फिर जाग गया सबसे पहले। दैनिक क्रिया से निवृत्त हो नहा कर छोटी सी पूजा की - आज मकर संक्रांति है। मंदिर जाना चाहता था पर विवशता है।





आज "माघे साते" है मतलब की माघ मास में सातवे दिन इतवार है- कभी कभी ही होता है- और मम्मी ने बताया की आज के दिन नमक न खाओ तो पूरे साल इतवार को नमक छोरने का फल मिलता है।





धीरे धीरे बच्चे जगे । सबकी छुट्टियाँ है।





मैं बिस्तर में ही पड़ा रहा, और कमरे में सुहानी धूप आती रही शाम तक। पत्रहीन शाखाओं के परे शुभ्र स्वच्छ आकाश में सूर्य देव चमकते रहे। अब कठिन सर्दी के दिन गिने चुने ही हैं। पत्रहीन वृक्ष के वसंत का इन्तेज़ार ख़त्म होने वाला है। दूर जाते सूर्य देव फिर से वापसी की यात्रा पर हैं- आज तो मकर राशि में भी प्रवेश कर चुके है।
उनका वापस आना अब निश्चित है. क्या मैं भी अपने दर्द से मुक्त हो उनके स्वागत मे खड़ा हो सकूँगा? बच्चों को ले सुमीता दोपहर मे पार्क चली गयीं. मैं अकेला थोड़ी देर टीवी देखता रहा . फिर लगा की लेटना ही होगा. उपर चला आया



अब सूर्यास्त हो चला है और अंधेरा होने ही वाला है. एक और चमकीला दिवस बीत गया- मैंने कुछ खास ना किया. इधर उधर कुछ बातें की- मगर खास बात ये जाना कि पंडी जी(गुरु जी) 80 ke vay me स्वस्थ है रोज टहलते हुए मुस्तफापुर से सूरजगढ़ा शाम मे टहलते जाते और आते हैं. आख़िर बार उनसे २-३ वर्ष पहले ही मिला था. अपने इर्द गिर्द जिनसे भी मिला उनका अपना सबसे थोड़ा था मगर वो सबसे संतुष्ट और प्रसन्न लगे- मेरी दौड़ और उसकी पहलियों को और उलझाते से। जान कर अच्छा लगा की वो स्वस्थ हैं और ग्लानि सी हुई की उनका शिष्य इस उम्र मे बिस्तर पकड़े है।

आप सब को शुभकामनायें। बस इतना ही किया कि किसी को कोई तीखा जला बुझा न कहा। गुस्सा न किया। विवश को क्रोध ज्यदा होता है। वचन से हिंसा सबसे आम हिंसक वृत्ति है। हम सब इससे बचें.