रविवार, 12 मई 2013

गर्म होती धरती

 
इस सप्ताह  एक खास खबर है की वातावरण में  co 2 की मात्रा 4 0 0  p p m  को पार कर चुका  है. ऐसा पहले ३०  लाख वर्ष पूर्व हुआ था जब आदमी का अस्तित्व भी नहीं था। काफी समय से वैज्ञानिक हमें सावधान करते आयें हैं कि  वातावरण में कार्बन  डाइऑक्साइड  की मात्र बढती जा रही है मगर विडंबना यह है कि इसके बढ़ने की दर पिछले ३ दशक में और ३ गुना हो गई है. कोई शक नहीं है कि  कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से धरती का तापमान बढ़ता है. आज से पहले जब  ये हालत थे तो समुद्र का तल ४० मीटर ऊपर था।

धरती के बढ़ते तापमान का असर व्यापक होगा। रेगिस्तान फैलेगा, मौसम उलटे पुल्टे होंगे , समय पर बारिश नहीं होगी और बाढ या सूखे की स्थिति बनी होगी। बड़े स्तर पर मानवों का पलायन होगा। इससे युद्ध और कल्हकी स्थिति उत्पन्न होगी।

हालात है कि मरीज़ को मालूम है  कि स्थिति बिगड़ रही है मगर परहेज़ फिर भी नहीं कर रहा। हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत  में सर छुपाए हैं . बस सोचते हैं कि  हमारे जीवन काल में तो ऐसा नहीं होगा. मगर हमारे बच्चों का क्या होगा.?

मुझे तो लगता   है कि  हमारे जीवन काल में ही व्यापक असर दीखने को मिलेन्गे .

इस रस्ते में सबसे बड़ी रुकावट देश की परिकल्पना है. हम एक धरती औए उसके लोग की तरह न सोच कर अपने अपने देश की सोचते है

अगर धरती को बचाना ही तो देशों को मरना होगा. जब सवाल ऐसे गंभीर हों तो देशो का मुद्दा हास्यास्पद लगने लगता है कि  लद्दाख में तम्बू किसने लगाये हैं .