गुरुवार, 15 जुलाई 2010

1857


१८५७ की क्रांति हमारे इतिहास की बड़ी मत्वपूर्ण घटना है। मैं पुस्तकालय में बैठा यूं ही समय काट रहा था। संयोग से मैंने पाया की अपने पुस्तकालय कार्ड की मदद से मैं the times के पुराने संस्करण को देख सकता हूँ- अंतरजाल पर। यह अखबार १९ वीशताब्दी में लन्दन से प्रकाशित होता था।

मैंने १८५७ के संस्करण में इंडियन mutiny विद्रोह को सर्च किया तो कई हैरान करने वाले तात्कालिक लेख मिले। कुछ तो यहाँ के संसद में सांसदों के बयां थे और कुछ भारत से अंग्रेज अफसरों के भेजे पत्र।
खैर एक मजेदार बात जो इससे उभर कर सामने आई वह थी १८५७ की क्रांति का अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य।
इस समय ईरान के दरबार में रूस के लोगों का अच्छा प्रवाव था। उनकी योजना थी की ईरान की फौउज अफगानिस्तान पर हमला करे, और उन्होंने हेरात को अपने कब्ज़े में लिया भी था। होना ऐसा था की जब अंग्रज़ ईरान और अफगानिस्तान में उलझे हों तभी हिंदुस्तान में बगावत हो और सब कुछ बदल दिया जाय, मगर ऐन वक्त पर अंग्रेजों का ईरान और रूस के साथ कोई समझौता हो जाता है और उनकी फौज हिंदुस्तान की तरफ आ पाती है और यहाँ के विद्रो को निर्ममता से कुचल देती है। अंग्रेजों को सबसे ज्यादा परेशानी ६ बंगाल regiment के सिपाहियों से होती है जो की मूलतः बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के लोग थे। उन्हें ऐसा भी लगता है की इस विद्रोह की जड़ में मूलतः हिदुस्तानी मुसलमान हैं औ हिन्दू भी बाद में उनके साथ हो गए हैं।
खैर यह विद्रोह विभिन्न कारणों से दबा दिया गया। सबसे ज्यादा दमन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हुआ और आगे भी यहाँ के लोगों aur musalmanon को अंग्रेजों ने aage badhne se roka. shayad is pradesh ke pichade honae ka ek karan yeh bhi ho.