मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

खुले ख्याल

कई खुले ख्याल दिमाग में आते और जाते हैं. जैसे- उग आये कई छोटे पौधे - इनकी देख भाल चिंतन की सिंचाई से मैं नहीं करता हूँ और कोई पकी फसल तैयार नहीं हो पाती है.ये अध् पके ख्याल मस्तिष्क के नभ पर शरद के मेघ की तरह मंडराते तो  है मगर घनीभूत हो बरस नहीं पाते.


इन अध् पके ख्यालों से भी एक मोह सा होता है. या फिर अकेला आलसी कंजूस  मर्द - रात पकी दाल की हांड़ी को ही खुरच   कर सुबह की रोटी खा जाना चाहता है.


जिंदगी एक jigsaw पहेली है - और हर छोटे छोटे निर्णय जो हम अनजाने अनायास लिए  चले जाते हैं; इस बृहत् दृश्य को बनाने वाली बिन्दुओं की तरह हैं. चाय का प्याला और चीनी का डिब्बा सामने पड़ा है - अब यह तो मेरा ही मन है की मैं चीनी लूं या नहीं. इस छोटी सी choice का क्या मतलब है?


प्रश्न बड़ा गंभीर है! ईश्वर है या नहीं? उसका स्वरुप क्या है? अलग अलग ग्रन्थों,  पैगम्बरों ने समझाने बताने की कोशिश तो की है मगर समझ आता नहीं. ओशो ने कहा की बुद्ध ने २५०० वर्ष पूर्व कहा था   की     यह गंभीर प्रश्न मिथ्या है धोखा है - फ़िज़ूल है - वक्त जाया न करो...... फिर तो उन सब से बचो जो  यह समझाने की मदद करना चाहते हैं. अब कल इम्तिहान हो तो आज जो दोस्त हिट फिल्म दिखाने आये उससे तो बचना  ठीक ही है.


अखबार में खबर छपी है की ८० वर्ष के बुजुर्ग २० वर्ष की आयु की तुलना में ज्यादा सुखी हैं. ५० के इर्द गिर्द तो सबसे बुरा हाल है. वयोवृद्ध बच्चों की तरह प्रसन्न हैं. - ऐसे, यह सर्वेक्षण पश्चिमी है तो थोडा ध्यान रखना होगा! खैर, जो खुश वृद्ध हैं - उनका कहना है " खतरा/रिस्क लिया तो वही अच्छा था और न लिया तो वही पश्चाताप है." पर जाने दें यह तो पश्चिमी बात   है. 


प्लास्टिक - जब ५०- ६० के दशक   में आई थी - तो प्रचारित हुआ था   क i  यह वो चीज़ है जो हाथियों की जान बचायगी-  चूँकि जंगल कम कटेंगे.  अब लोग परेशां हैं. ५% प्लास्टिक ही recycle होती  है. बन गयी तो कम से कम 500 वर्षों  तक  तो रहेगी  ही. " a material suitable to produce disposable but irony is that it is most indestructible"  




















सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

रामचरितमानस: राम कथा के परे

तुलसी दास कृत रामचरितमानस कई मायनों  में एक मापदंड कृति है.साहित्य की दृष्टि से  हिंदी की सिरमौर कृति है, धार्मिक ग्रन्थ के रूप में तकरीबन  हर हिन्दीभाषी के घर में इसकी उपस्थिति है और सच्चे मायने में एक लोक ग्रन्थ है जिसका उद्धरण गाँव के अनपढ़ भी अनायास देते मिल जायेंगे.

सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है की यह दशरथ पुत्र राम की कथा है और तुलसीदास ने इसे दास्य भाव से भक्ति की भावना से लिखा है.

श्री राम की कथा तुलसी के पूर्व भी लोकसमान्य में प्रचलित थी. तुलसीदास ने जब जन साधारण की भाषा में आज से ४०० वर्ष पूर्व इसकी रचना की थी तो उन्हें विद्वत जनों में इसके विरोध का खूब  एहसास था. उन्होंने  शुरू  में ही  निंदकों "खल" की वंदना की है. मगर विद्वत जन इसका क्यों विरोध कर रहे थे? ऐसा   क्या था जो वो जन साधारण को बोली में उन तक नहीं पहुँचने देना चाहते थे? "वह"  सिर्फ एक कहानी हो ऐसा शायद ही हो.  

रामचरित मानस के प्रारंभ के पन्नों को पढने से मुझे ऐसा लगा की शायद यह सर्वविदित राम कथा   के परे भी कुछ कहना चाह रही है.

तुलसीदास इसके शुरुआत में ही कहते हैं की यह कथा गूढ़ ( कठिन , क्लिष्ट, गंभीर )  है, और गुरु के बताने पर ही वो इसे उम्र बीतने पर ही समझ पाए - इससे ऐसा संकेत मिलता है कि इसका कोई सांकेतिक अर्थ है जो सतही अर्थ से गंभीर है.
  
कथा ऐसी है कि इसे सबसे पहले शिव ने पार्वती से कहा जिसे काक्भुशुन्दी ने सुना और फिर ऋषि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज से कहा और अब तुलसीदास इसे लोकजन के   लिए कह रहे हैं.     

महर्षि भारद्वाज भी याज्ञवल्क्य से ऐसी ही प्रार्थना  करते हैं कि जो "राम" हैं क्या वो वहीँ हैं जो जग विदित दशरथ पुत्र राम हैं? ऐसा लगता है कि याज्ञवल्क्य से इस कथा को सुनने के पूर्व ही उन्हें कहानी तो मालूम थी मगर इसमें कुछ था जो वो समझ नहीं पाए थे. 

शिव ध्यान निमग्न हैं, भावविह्वल हैं, - पार्वती शिव के इस भावावस्था को समझना चाहती हैं - और शिव उन्हें यही समझाने के लिए "राम कथा" सुनाते हैं.   फिर यह मुझे लगता है कि कोई गंभीर बात है जो सांकेतिक रूप में कही गई हो. 

कहीं रामचरितमानस आध्यात्मिक विकास यात्रा का सांकेतिक वर्णन तो नहीं? कहीं राम सीता और रावण सब हमारे अन्दर ही तो नहीं? हालाँकि ऐसा कहना भी कोई नई बात नहीं है - मगर रामचरितमानस पढ़ते ऐसा लगा कि शुरू में ही   तुलसीदास ने इसके सटीक संकेत दिए हैं. 

मैं स्वास्थ्य की वजह से तत्काल काम पर नहीं जा पा रहा हूँ और इसी लिए  इस ग्रन्थ को पढने का अवसर मिला है. मेरे पास जो प्रति है उसमे प्रचलित हिंदी में सरलार्थ नहीं है. इसलिए मैं  बहुत कुछ नहीं भी समझ पाता हूँ. मगर अगर ठहर ठहर कर पढूं तो अर्थ कुछ खुलते   से भी लगते हैं.
तुलसीदास की ख्याति ज्योतिषी   के रूप में भी खूब थी. क्या मानस में इसकी झलक मिलती है?  अब तक तो मैंने नहीं पाया है. तुलसीदास अकबर के समकालीन थे मगर उनकी रचना में इसकी झलक भी नहीं मिलती है. शब्दं के चयन में भी तत्सम शब्द ही मिलते हैं- हाँ "गरीब नवाज" उन्होंने रामके लिए प्रयुक्त किया है.