गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

अमर चित्र कथा के प्रणेता नहीं रहे


अनंत पई, का ८१ वर्ष कि उम्र में देहावसान हो गया।

हमारी पीढ़ी के कई लोग अमर चित्र कथा को पढ़ते हुए बड़े हुए होंगे। यह चित्र कथा अनंत पई कि कृति थी।

बचपन में अमर चित्र कथा हमारे मन पर एक जादू सा था। सोचता था कि बड़ा हो कर किसी किताब के दूकान पाद काम करूं और दिन भर इन कोमिक्स को पढता रहूँ। ऐसा हो नहीं पाया। मेरा जीवन जिन कुछ चीजों से बेहद गहरे तौर पर प्रभावित हुआ है उसमे अमर चित्र कथा निश्चय ही एक है। अगर अनंत पई जी कि अमर चित्र कथा न होती तो शायद दुनिया और भारत को मेरे देखने का नजरिया काफी अलग होता।

आज मन अनंत जी को एक शिष्य वत श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
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शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

लम्बी उम्र का प्रयोजन


मानव १०० साल कि जिंदगी क्यों पाता है? ऐसा माना जाता है कि अगर सब कुछ ठीक ठाक चले तो आदमी सौ साल तक जी सकता है। कुछ ऐसे जानवर भी हैं जिनकी लम्बी आयु होती है जैसे कि तोता, कछुआ, और हाथी.


छोटे बच्चे ज्यदा देर तक ध्यान केन्द्रित नहीं रख सकते, मन चंचल होता है.। युवा मन शक्तिशाली और सक्षम तो है पर काम की तीव्र कमाना इसे उलझाये रखती है। अधेड़ उम्र में मन शांत तो होता है मगर जिम्मेदारियों के बोझ में दबा और आदतों se मजबूर.। फिर बुढ़ापे में शक्ति क्षीण हो जाती है और नैराश्य मन में घर करने लगता है। जिंदगी ऐसे ही गुजर जाती है।


मुझे मालूम नहीं कि लम्बी उम्र के जानवरों का जीवन क्या और कैसा है। या वो सिर्फ प्रकृति का एक प्रयोग मात्र है।

ऐसे में कभी कभी फुर्सत में मन सोचता है कि क्या जीवन का कोई तात्पर्य है या फिर बस यह एक प्राकृतिक संयोग है, जैसे कि बहती हवा में उड़ गया कोई पत्ता या सागर कि लहरों से इधर से उधर होता बालुका कण - इसका कोई प्रायोजन नहीं कोई तात्पर्य नहीं। और फिर ऐसे में जीवन के जीने का एक ही सही तरीका देखता है और वह है -मौलिक संवेदनाये -basic instincts। काम, क्रोध, भूख, भय आदि।


मगर यह सच नहीं है। क्यों नहीं है? तर्क से बता नहीं सकता मगर बस सही नहीं लगता है। तो फिर क्या मतलब है क्या प्रयोजन है? यह सवाल अनुत्तरित है और हर किसी को अपने सवालों का हल ढूंढना है और और शायद मानवों कि लम्बी उम्र इसी के लिए है। मगर अब जिंदगी ऐसी है कि ऐसी फालतू सवाल के लिए वक्त ही नहीं, और तो और जिंदगी aisi उलझ जाती hai कि यह सोचने ka भी वक्त नहीं मिलाता कि koi सवाल bhi है? अनुत्तरित प्रश्न मन ko व्यथित करते हैं।

तो फिर आयें। एक विराम लगायें। ठहरें। मूंदे नयन। देखें अंतर्मन। रूबरू हों दबे छुपे सवालूँ से और दूंदे उसका ज़वाब.

क्या येहि ध्यान है