सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

रामचरितमानस: राम कथा के परे

तुलसी दास कृत रामचरितमानस कई मायनों  में एक मापदंड कृति है.साहित्य की दृष्टि से  हिंदी की सिरमौर कृति है, धार्मिक ग्रन्थ के रूप में तकरीबन  हर हिन्दीभाषी के घर में इसकी उपस्थिति है और सच्चे मायने में एक लोक ग्रन्थ है जिसका उद्धरण गाँव के अनपढ़ भी अनायास देते मिल जायेंगे.

सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है की यह दशरथ पुत्र राम की कथा है और तुलसीदास ने इसे दास्य भाव से भक्ति की भावना से लिखा है.

श्री राम की कथा तुलसी के पूर्व भी लोकसमान्य में प्रचलित थी. तुलसीदास ने जब जन साधारण की भाषा में आज से ४०० वर्ष पूर्व इसकी रचना की थी तो उन्हें विद्वत जनों में इसके विरोध का खूब  एहसास था. उन्होंने  शुरू  में ही  निंदकों "खल" की वंदना की है. मगर विद्वत जन इसका क्यों विरोध कर रहे थे? ऐसा   क्या था जो वो जन साधारण को बोली में उन तक नहीं पहुँचने देना चाहते थे? "वह"  सिर्फ एक कहानी हो ऐसा शायद ही हो.  

रामचरित मानस के प्रारंभ के पन्नों को पढने से मुझे ऐसा लगा की शायद यह सर्वविदित राम कथा   के परे भी कुछ कहना चाह रही है.

तुलसीदास इसके शुरुआत में ही कहते हैं की यह कथा गूढ़ ( कठिन , क्लिष्ट, गंभीर )  है, और गुरु के बताने पर ही वो इसे उम्र बीतने पर ही समझ पाए - इससे ऐसा संकेत मिलता है कि इसका कोई सांकेतिक अर्थ है जो सतही अर्थ से गंभीर है.
  
कथा ऐसी है कि इसे सबसे पहले शिव ने पार्वती से कहा जिसे काक्भुशुन्दी ने सुना और फिर ऋषि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज से कहा और अब तुलसीदास इसे लोकजन के   लिए कह रहे हैं.     

महर्षि भारद्वाज भी याज्ञवल्क्य से ऐसी ही प्रार्थना  करते हैं कि जो "राम" हैं क्या वो वहीँ हैं जो जग विदित दशरथ पुत्र राम हैं? ऐसा लगता है कि याज्ञवल्क्य से इस कथा को सुनने के पूर्व ही उन्हें कहानी तो मालूम थी मगर इसमें कुछ था जो वो समझ नहीं पाए थे. 

शिव ध्यान निमग्न हैं, भावविह्वल हैं, - पार्वती शिव के इस भावावस्था को समझना चाहती हैं - और शिव उन्हें यही समझाने के लिए "राम कथा" सुनाते हैं.   फिर यह मुझे लगता है कि कोई गंभीर बात है जो सांकेतिक रूप में कही गई हो. 

कहीं रामचरितमानस आध्यात्मिक विकास यात्रा का सांकेतिक वर्णन तो नहीं? कहीं राम सीता और रावण सब हमारे अन्दर ही तो नहीं? हालाँकि ऐसा कहना भी कोई नई बात नहीं है - मगर रामचरितमानस पढ़ते ऐसा लगा कि शुरू में ही   तुलसीदास ने इसके सटीक संकेत दिए हैं. 

मैं स्वास्थ्य की वजह से तत्काल काम पर नहीं जा पा रहा हूँ और इसी लिए  इस ग्रन्थ को पढने का अवसर मिला है. मेरे पास जो प्रति है उसमे प्रचलित हिंदी में सरलार्थ नहीं है. इसलिए मैं  बहुत कुछ नहीं भी समझ पाता हूँ. मगर अगर ठहर ठहर कर पढूं तो अर्थ कुछ खुलते   से भी लगते हैं.
तुलसीदास की ख्याति ज्योतिषी   के रूप में भी खूब थी. क्या मानस में इसकी झलक मिलती है?  अब तक तो मैंने नहीं पाया है. तुलसीदास अकबर के समकालीन थे मगर उनकी रचना में इसकी झलक भी नहीं मिलती है. शब्दं के चयन में भी तत्सम शब्द ही मिलते हैं- हाँ "गरीब नवाज" उन्होंने रामके लिए प्रयुक्त किया है.








    




       

4 टिप्‍पणियां:

  1. रामचरित मानस एक गहरा समुद्र सा है, हर बार, हर कोई, कोई न कोई माणिक निकाल आता है।

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  2. धन्यवाद प्रवीन जी. सच में तुलसी की रामायण में हमेश हर किसी के लिए कुछ नया है जो इसे कालजयी रचना बनती है.
    ज्ञानदत्त जी के पोस्ट पर आपकी सपरिवार तस्वीर देखी ख़ुशी हुई.आप गर्दन की पीड़ा से उबार गए है जान करअच्छा लगा.

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  3. "NANAPURAN NIGAMAGAM SAMMATAM YAT RAMAYANE NIGADITAM KWACHIDANYATOAPI" SHLOK YAH SAM JHATA HE KI PURNO,AAGAM,NIGAM KI SAMMATI TO HE HI KUCHH ANYA SE BHI LEKAR YAH RACHNA KI HE."
    GOSWAMIJI KI KAVYAMAY JEEVAN KATHA KI RACHNA JAB KAR RAHA THA TO IS "KWACHIDANYTOAPI" NE BAHUT PARESHAN KIYA PAR PRABHUKRIPA SE TAAR JUDTE CHALE GAYE. RAM KATHA MERE SHODH KA VISHAI RAHI HE.

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  4. धन्यवाद श्रीमान कृष्णकांत माथुर जी. मैं आपके कहे श्लोक को अपनी सुविधा के लिए देवनागरी में लिख रहा हूँ.

    "नानापुराण निगामगाम्सम्मतं यत रामायणे निगादितम क्वचित अन्य अति अपि (क्वाचिदन्यातोपी)"
    शायद मेरे लिखे में त्रुटी है, क्षमा करें.
    आप ने इस विषय पर अनुसन्धान किया है - आपसे बहुत कुछ अनुहा जानने को मिलेगा. तत्काल अपनी छुद्ध बुद्धि से रामायण का आनंद ले रहा हूँ.

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