विश्व स्वास्थय संगठन ने पाँचवे पादन (लेवल ५) की गंभीरता, स्वाइन फ्लू के pandemic होने की खतरे के लिए घोषित कर दी है। पाश्चात्य जगत में इस बात को ले कर काफी गहमा गहमी है। भारतीय समाचार तंत्र में इसके लिए उतनी उत्सुकता और महत्त्व नही दीखता है। भारत चुनाव संग्राम और क्रिकेट में व्यस्त है। मगर एक दस्तक हमारे दरवाजे पर हो रही है जिसे हमें नजरअंदाज नही करना चाहिये।
मैं पिछले ६ वर्षों से आंग्ल देश में कार्यरत हूँ। मुझे कभी स्वाश्थ्य की वजह छुट्टी नहीं लेनी पड़ी थी, मगर पिछले वर्ष के उत्तरार्ध में मैं फ्लू (influenza) से पीड़ित हुआ और करीब ५-७ दिनों तक काम पर नही जा सका। फ्लू एक विषाणु(वायरस) जनित रोग है। और आम तौर पर विषाणु जनित संक्रमण (वाइरल इन्फेक्शन्स) उतने गंभीर नही होते और इसके लिए किसी खास इलाज़ की भी जरूरत नहीं होती है। साधारण सर्दी जुकाम इसके उदाहरण हैं।
मैं एक डॉक्टर हूँ और हॉस्पिटल में कार्यरत हूँ। मुझे मालूम था की यह फ्लू है , मगर मैं हैरान था की एक वाइरल इन्फेक्शन मुझे इतना कमजोर और बेबस कर सकता है की मैं काम पर न जा सकूं। यह मौसमी फ्लू था। जो हर साल सर्दियों में ठंडे देशों में (और भारत में भी) आता है। मेरे साथ घर के अन्य सदस्य भी इससे पीड़ित हुए। छोटी लड़की को तेज बुखार, सर्दी, खांसी और उल्टियां हो रही थी। मुझे मालूम था की इलाज़ के नाम पर बस paracitamol देना है, और बच्चे के पोषण और तरल आपूर्ति (fluid intake) का धयान रखना है, अभी कुछ १ सप्ताह में ख़त्म हुआ।
हिदुस्तान में भी अक्सर हम इससे संक्रमित होत हैं और ठीक भी हो जाते हैं। कई बार बच्चों और वयस्कों को antibiotic लेने की भी जरूरत पड़ती है। यह फ्लू वायरस के लिए नही पर इसकी वज़ह से हमारे शरीर जीवाणु (bacteria) से भी संक्रमित हो सकता है और उसके लिए antibiotic कारगर इलाज़ है। कई बार antibiotics अनावश्यक रूप से भी प्रयोग किए जाते हैं।
यह तो मैंने एक रूप रेखा दी थी सामान्य फ्लू की जो हर साल आता है और हमें सताता है। आम बोल चल में आपने सुना होगा- मौसम बदल रहा है और ठण्ड लग गई है, - यही फ्लू है।
वृध्ध लोगों में यह रोग जान लेवा भी हो सकता है। हर साल इंग्लैंड में फ्लू की वजह से हजारों लोगों के मौत होती है मगर ये सभी काफी उम्रदराज होते हैं।
फ्लू के वायरस के लिए कोई सक्षम टीका नहीं बन पाया है, कारण यह विषाणु हर चन सालों में अपना स्वरुप बदल लेता है और फिर टीका बे असर हो जाता है। कभी कभी जब इसके स्वरुप में कोई बड़ा परिवर्तन होता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति इसे पेहचान नही पाती और यह बिमारी ज्यादा लोगों में औएर ज्यादा गंभीर रूप से फैलती है।
अगर कोई ऐसे बिमारी देश की सीमाओं के पार एक साथ कई देशों में फैल जे तो इस फी pandemic कहते हैं।
आज से ४० साल पहले फ्लू pandemic का प्रकोप हुआ था जब करोंरों लोगों की जान गई थी।
फिर कुछ ऐसा होने वाला है। इस बार यह विषाणु सूअरों और पक्षियों में होने वाले फ्लू का कुछ भेष ले कर आया है इस लिए इसे swine flu kaha jaa raha hai. यह मेक्सिको से शुरू हो कर दुनिया के विभिन्न ब्भागों में फ़ैल रहा है। आपकू याद होगा की कुछ वर्ष पहले बर्ड फ्लू के प्रकोप था , मगर तब बर्ड फ्लू के विषाणु सीरक पक्षियों से मनुष्यों में आ रहे थे, इस लिए सिर्फ़ वो लोग जो पॉल्ट्री में काम करते हैं इसके शिकार हुए थे और पक्षियों में इसके रोकथाम से इसका खतरा ख़त्म हो गया था। मगर swine फ्लू मानव से मानव में फिल रहा है इस लिए इसे रोक पाना मुर्गों के कत्लेआम की तरह आसान नही होगा।
मेक्सिको सिटी दुनिया के चाँद सबसे ज्यादा आबादी वाले शहरों में से है। मगर आज वहाँ के सारे स्कूल कॉलेज और कोई ऐसे जगह जहाँ लोग इकठ्ठे हो सकते हैं पर पाबंदी लगी हुई है। १५० के करीब लोगों कि मौत हो चुकी है और इनमे से ज्यादा तर लोग ४५ से कम उम्र के हैं। अगर यह बिमारी भारत पहुँचती है तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते है क्यों कि हमारी आबादी सघन है और हमारा तंत्र ऐसी महामारी से निबटने के लिए तैयार नही है।
जरूरत है कि आम आदमी इसके बारे में ज्यादा जाने, और यह हमारी मदद कर सकता है।
धन्यवाद.
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Good advise on a dangerous disease.Pl keep doing.My best wishes
जवाब देंहटाएंDr.bhoopendra
लिखते रहें
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
मेरे ब्लोग पर स्वागत है
आपके ब्लॉग की सामग्री काफी अच्छी लगी, आप अच्छा लिखते हैं ,
जवाब देंहटाएंसाथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है ,
यूँ ही लिखते रही हमें भी उर्जा मिलेगी ,
धन्यवाद
मयूर
अपनी अपनी डगर
first time visit kiya aapka blog. Acchi information hain
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