धर्म और संस्कृति का परिवर्तन - अच्छा या बुरा
भारत के इतिहास का अध्यन मेरे मन को दुखी कर देता है. इसमें, कदम कदम पर पराजय और मौकों को गवाने की कहानी है. बार .बार वे लोग हार जाते हैं जो इस जमीन और यहाँ की संस्कृति का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं.
सिन्धु घाटी की सभ्यता का लोप शायद बाहर से आये आक्रामक आर्यों के आक्रमण से हुआ.
यहाँ के मूल निवासी पराजित हुए और इसी देश में दुसरे दर्जे के लोग बन कर सदियों से जीते रहे.
बौध धर्म का उदय और विस्तार हुआ, प्रचलित पाम्परिक धर्म भी चलता रहा. यह स्थिति शायद अच्छी थी. मगर क्रमशः सामाजिक दोषों से देश ग्रस्त होता गया.
इस्लामिक आक्रमण हुए और आक्रमणकारी विजयी हुए. जो मुस्लमान यहीं के हो गए और जब उन्होंने बाहरी आक्रमण का सामना किया तो हार गए. महमूद घज्नवी, मोहम्मद घोरी, बाबर, अहमद शाह अब्दाली बहार से आये विजेताओं की फेहरिस्त हैं. इनके विजयी होने का हमारे इतिहास पर बड़ा व्यापक असर हुआ है. पानीपत की तीन लड़ाइयों ने इतिहास का रुख बदल दिया और तीनों बार जो हिन्दुस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वे हार गए.
फिर अंग्रेजों का आना हुआ और आश्चर्य होता है की वो भी जीत गए. उनके जाते जाते पकिस्तान बन गया. देश का बहुत बड़ा हिस्सा यहीं के लोगों के लिए विदेश हो गया.
आज बचे हुए भारत में लोकतंत्र है जिस पर मुझे गर्व और ख़ुशी होती है. मगर यह देश संकटों से ग्रस्त दीखता है. बहुत बड़ी आबादी असंतुष्ट है.
मैं चाहता हूँ की भारत बचा रहे और यहाँ की संस्कृति बची रहे. यह देश बढे और विस्तार करे.
चाहता हूँ की पाकिस्तान और बंगलादेश भी हमारे दुश्मन न होकर हमारे ही बंधू हमारे ही लोग हों.
मगर यह क्या है जो मैं बचाना चाहता हूँ? मैं किसका विस्तार चाहता हूँ? मैं किस संस्कृति की बात कर रहा हूँ? क्या मैं "हिन्दू" धर्म और इसकी व्यवस्था को बनाये और बचाना चाहता हूँ ? क्या मैं इसका विस्तार चाहता हूँ? शायद हाँ शायद नहीं.
अगर सोचूँ तो लगता है की समय समय पर बाहर के लोगों और उनके विचारों का इस देश में आना हमारे देश को समृद्ध और सम्पूर्ण बनाता है. इस्लाम और अंग्रेजो से जो हमारा गहरा मिलना जुलना हुआ है उससे बहुत कुछ अच्छा हुआ है. हम बेहतर हुए हैं. अगर किसी तरह यह आचार विचारों का मिलन बगैर पराजित और परतंत्र हुए हो सकता तो अच्छा होता. मगर यह तो इतिहास है हम इसे बदल नहीं सकते.
बदलना अच्छा है और यही समाज को जीवंत रखता है. इसमें मुझे कोई शक नहीं. तो फिर मुझे क्यों बुरा लगेगा अगर पूरा देश बदल कर इंग्लिश बोलने लगे या धर्म परिवर्तन कर लें. मैं इंग्लिश जानता हूँ और बोलता पढता भी हूँ. और यह अच्छा है बुरा नहीं.
आप क्या सोचते हैं??????
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change is always good
जवाब देंहटाएंbadlav jaruri he
जवाब देंहटाएंआज दिनांक 17 जून 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट बदलाव का जीवन शीर्षक से प्रकाशित हुई है। स्कैनबिम्ब के लिए लिंक बदलाव का जीवन पर क्लिक कीजिएगा।
जवाब देंहटाएंआपकी मेल तो अपने पास है नहीं। पता नहीं राकेश रवि जी से कैसे होगा मेल।
जवाब देंहटाएंयह सही है कि भारत मे इतिहास सही तरीके से नहीं लिखा गया । मैं भी काफी व्यथित होता हूँ । इस पर मैने 53 पेज की एक लम्बी कविता भी लिखी है .." पुरातत्व वेत्ता " जिसे भारत की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका " पहल " ने प्रकाशित किया है । सम्भेव हुआ तो कुछ समय बाद इसे अपने ब्लॉग पुरातत्ववेत्ता पर दूंगा ।
जवाब देंहटाएंआप इस ब्लॉग को देखिये आपको कुछ प्रश्नो के उत्तर मिल सकते हैं
पता है http://sharadkokas.blogspot.com