शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

हमारा शरीर: हमारी त्वचा





हमारे शरीर में अलग अलग तंत्र हैं जो एक दुसरे पर निर्भर हैं और कुछ हद तक स्वायत्त भी।





आज हम त्वचा के विषय में बात करते हैं.





शरीर त्वचा से ढका है। त्वचा शरीर का एक सबसे बड़ा अंग है। आधुनिक आयुर्विज्ञान में इसके दो परत बताये गए हैं - epidedmis (ऊपरी परत) और dermis ( नीचली परत) और इसी से त्वचा विशेषज्ञ को dermatologist(डरमेटोलोंजीस्ट) कहते हैं। एपीडरमिस की कोशिकायें सतत झडती और बनती रहती हैं। dermis जो कि त्वचा की नीचली परत है इसमें केशिका के मूल (hair follicle) और स्वेद ग्रंथियां ( sweat glands) होती हैं। स्वेद ग्रंथिया त्वचा के सतह पर खुलती है। इनका मौलिक कार्य शरीर के तापमान को नियंत्रित करने का है। इसके अलावा sebacious (सेबसियस) ग्रंथि होती है जो कि एक तैलीय पदार्थ का सतह पर श्राव करती है जो त्वचा को स्वस्थ और मुलायम रखता है। त्वचा के अन्दर कई अलग प्रतिरोधी कोशिकाएं ( immmunity cells) भी होती हैं जो त्वचा को भेद कर अन्दर घुसे किसी भी जीवाणु या अन्य हानि कारक पदार्थ को नियंत्रित करती हैं।





त्वचा में एक प्रकार की कोशिका पाई जाती है जिसे मिलानोसाइट (melanocyte) कहते हैं। ये मेलानिन नाम की एक वर्णक (पिगमेंट) को बनाती हैं जिससे हमारे त्वचा को रंग मिलता है। अगर melanocyte ज्यादा है तो रंग काला और कम तो रंग गोरा। melanocyte अगर कहीं ज्यदा हो जय तो तिल या कला मस्सा बन जाता है।





सेबेसियस ग्रंथि अगर ज्यादा हो और उसका मुहं बाद हो जाय तो उसे मुहांसा (एक्ने) कहते हैं। इन ग्रंथि की संख्या और कार्य होरमोन से नियंत्रित होती है जो किशोरावस्था में बढ़ जाती है।





अगर त्वचा जल जाय और सिर्फ एपीडरमिस को नुक्सान हो तो scar नहीं बनते मगर dermis के जल जाने से scar बनते हैं और वहां फिर से बाल नहीं उग पाते।





त्वचा हमारे शरीर की रक्षा को सतत सजग अंग है- हमारा BSF -हम इसे जाने और इसकी देखभाल करें।




















2 टिप्‍पणियां: