आज ७ मार्च २०११ है। क्या यह कोई खास दिन है?
आज श्री हीरानंद सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' का जन्मदिन है। आज से ठीक सौ साल पहले हिंदी जगत के इस महापुरुष का अविर्भाव हुआ था। आज कि रात जब मैं हमारीवाणी पर आया तो निराशा सी हुई कि तमाम शोरगुल के बीच लोग भूल गए हैं इस खास दिन को. बड़ी बातें हैं महिला दिवस के सम्बन्ध में। मगर शायद अब हम अपने नायकों को प्रतिष्टित या स्मरण करना दकियानूसी मानने लगे हैं।
अज्ञेय का निधन ४ अप्रैल १९८७ में हुआ। मुझे बहुत अफ़सोस था कि मैं उनसे मिल नहीं पाया था। तब मैं स्कूल में ९ वीं कक्षा में था। उनमे मैंने एक नायक पाया था। अज्ञेय पढना तब युवा और विद्रोही होने कि पहचान थी।
"शेखर एक जीवनी" भाग एक हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक है। उनकी सम्पूर्ण कहानिया मैंने गर्मी कि छुट्टियों में ख़त्म कि थी।
नदी के द्वीप और आपने अपने अजनअबी उनके आना उपन्यास हैं।
उनकी कविताये हिंदी कि कालजयी धरोहर है।
क्या आपने "कतकी पूनो" नहीं पढ़ा है?
अभी वसंत पंचअमी गुजर गयी बगैर निराला को याद किये।
अज्ञेय अपनी कहानी "शरणार्थी" में लिकते हैं "दुनिया में अँधेरा बादलों के छाने से नहीं बल्कि सूरज के निस्तेज होने स होता है। दुनिया में बुराई बुरों कि ताकत से नहीं बल्कि अच्छों कि कमजोरी से है।"
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अज्ञेय को पढ़ना एक सुखद अनुभव है।
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