मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी


दिन भर कि झूटी मुस्कानों के बीच झूठी गिट पिट अंग्रेजी से बोझिल मन जब शाम में हेमंत कुमार के गीत सुनकर फिर से तरोताज़ा हो अंतर्जाल के पन्नों में निराला और अग्येय को ढूंढता है, पढता है और सुकून पाता है, मन सोचता है यह जादू किसी और जुबान में क्यों नहीं होता।
पटना पहुँच कर सुरेन्द्र भाई से बाल बनवाते हुए मोहल्ले कि जो बातें और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर जो टिपण्णी जिस जुबान में होती है, वो हिंदी है, और उसका अनुवाद नहीं हो सकता। बातों का वह अंदाज़ और खुलापन हिंदी को मरने नहीं देता है।
हिंदी दिवस की शुभकामनायें

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