वर्धमान
शनिवार, 4 सितंबर 2010
शैतान की परिकल्पना
मैंने यह पोस्ट लिखी है मगर नए सन्देश कि जगह यह एक नए पृष्ठ कि तरह प्रकाशित हो गया है। क्या आप इसे मेरे ब्लॉग पर ढूंढ और देख सकते हैं।
इसे कैसे सुधार जय बताएं।
धन्यवाद.
1 टिप्पणी:
प्रवीण पाण्डेय
5 सितंबर 2010 को 8:11 am बजे
मानव ही कभी शैतान बन जाता है और कभी देवता।
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